गुप्त नवरात्र 2021 – गुप्त नवरात्रि की पूजा विधि एवं कथा
गुप्त नवरात्र 2021 – Gupt Navratri 2021
देवी दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि वही इस चराचर जगत में शक्ति का संचार करती हैं। उनकी आराधना के लिये ही साल में दो बार बड़े स्तर पर लगातार नौ दिनों तक उनके अनेक रूपों की पूजा की जाती है। 9 दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व को नवरात्र कहा जाता है। जिसके दौरान मां के विभिन्न रूपों की पूजा आराधना की जाती है। इन नवरात्र को चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन साल में दो बार नवरात्र ऐसे भी आते हैं जिनमें मां दुर्गा की दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है।
यह साधना हालांकि चैत्र और शारदीय नवरात्र से कठिन होती है लेकिन मान्यता है कि इस साधना के परिणाम बड़े आश्चर्यचकित करने वाले मिलते हैं। इसलिये तंत्र विद्या में विश्वास रखने वाले तांत्रिकों के लिये यह नवरात्र बहुत खास माने जाते हैं। चूंकि इस दौरान मां की आराधना गुप्त रूप से की जाती है इसलिये इन्हें गुप्त नवरात्र भी कहा जाता है। आषाढ़ की गुप्त नवरात्रि 11 जुलाई से शुरू होकर 18 जुलाई तक चलेंगी. इन नवरात्रि में भी भक्त निराहार रहकर या फलाहार लेकर व्रत करते हैं.
वर्ष 2021 में गुप्त नवरात्रि
इस साल आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा गज यानी हाथी की सवारी से आएंगी. इन नवरात्रों पर इस बार गुप्त नवरात्र पर सर्वार्थ सिद्धि योग (Sarvartha Siddhi Yog) बन रहा है, जो कि 11 जुलाई को सुबह 5:31 बजे से रात 2:22 तक रहेगा और उस दिन रवि पुष्य नक्षत्र भी पड़ रहा है, यह विशेष संयोग बेहद शुभकारी है और सारे काम सिद्ध करने वाला है. इसके अलावा नवरात्र में पूजा की शुरुआत आर्द्रा नक्षत्र में होने से योग और उत्तम हो गया है. बता दें कि नवरात्र 8 दिन की होगी, क्योंकि षष्टी और सप्तमी तिथि एक ही दिन हैं. इससे सप्तमी तिथि का क्षय हो गया है.
गुप्त नवरात्र तिथि
नवरात्रि तिथि – 11 जुलाई 2021
घटस्थापना मुहूर्त – 05:31 ए एम से 07:47 ए एम
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त – 11:59 ए एम से 12:54 पी एम
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – जुलाई 10, 2021 को 06:46 ए एम बजे से
लाभ और अमृत का चौघड़िया सुबह 9.08 से शुरू होकर 12.32 तक रहेगा. वहीं अभिजीत मुहूर्त दिन में 12.05 मिनट से 12.59 मिनट तक रहेगा.
गुप्त नवरात्रि क्या हैं ?
4 नवरात्र में से 2 को प्रत्यक्ष नवरात्र कहा गया है क्योंकि इनमें गृहस्थ जीवन यानी आम जनता पूजा पाठ करते हैं. वहीं 2 को गुप्त नवरात्र कहा गया है, जिनमें आमतौर पर साधक-संन्यासी, सिद्धि प्राप्त करने की इच्छा करने वाले लोग, तांत्रिक आदि देवी मां की उपासना करते हैं. हालांकि चारों नवरात्र देवी सिद्धि प्रदान करने वाली होती हैं, लेकिन गुप्त नवरात्र के दिनों में देवी की दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है, जिनका तंत्र शक्तियों और सिद्धियों में विशेष महत्व है. वहीं, प्रत्यक्ष नवरात्र में सांसारिक जीवन से जुड़ी चीजें देने वाली देवी के 9 रूपों की पूजा होती है. गुप्त नवरात्र में सामान्य लोग भी किसी विशेष इच्छा की पूर्ति या सिद्धि के लिए गुप्त नवरात्र में साधना कर सकते हैं.
गुप्त नवरात्र कथा
गुप्त नवरात्र के महत्व को बताने वाली एक कथा भी पौराणिक ग्रंथों में मिलती है कथा के अनुसार एक समय की बात है कि ऋषि श्रंगी एक बार अपने भक्तों को प्रवचन दे रहे थे कि भीड़ में से एक स्त्री हाथ जोड़कर ऋषि से बोली कि गुरुवर मेरे पति दुर्व्यसनों से घिरे हैं जिसके कारण मैं किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य व्रत उपवास अनुष्ठान आदि नहीं कर पाती। मैं मां दुर्गा की शरण लेना चाहती हूं लेकिन मेरे पति के पापाचारों से मां की कृपा नहीं हो पा रही मेरा मार्गदर्शन करें। तब ऋषि बोले वासंतिक और शारदीय नवरात्र में तो हर कोई पूजा करता है सभी इससे परिचित हैं।
लेकिन इनके अलावा वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र भी आते हैं इनमें 9 देवियों की बजाय 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। यदि तुम विधिवत ऐसा कर सको तो मां दुर्गा की कृपा से तुम्हारा जीवन खुशियों से परिपूर्ण होगा। ऋषि के प्रवचनों को सुनकर स्त्री ने गुप्त नवरात्र में ऋषि के बताये अनुसार मां दुर्गा की कठोर साधना की स्त्री की श्रद्धा व भक्ति से मां प्रसन्न हुई और कुमार्ग पर चलने वाला उसका पति सुमार्ग की ओर अग्रसर हुआ उसका घर खुशियों से संपन्न हुआ।
गुप्त नवरात्र की पूजा विधि
जहां तक पूजा की विधि का सवाल है मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान भी पूजा अन्य नवरात्र की तरह ही करनी चाहिये।
नौ दिनों तक व्रत का संकल्प लेते हुए प्रतिपदा को घटस्थापना कर प्रतिदिन सुबह शाम मां दुर्गा की पूजा की जाती है।
अष्टमी या नवमी के दिन कन्याओं के पूजन के साथ व्रत का उद्यापन किया जाता है।
वहीं तंत्र साधना वाले साधक इन दिनों में माता के नवरूपों की बजाय दस महाविद्याओं की साधना करते हैं। ये दस महाविद्याएं मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी हैं।
एस्ट्रोयोगी की सभी साधकों से अपील है कि तंत्र साधना किसी प्रशिक्षित व सधे हुए साधक के मार्गदर्शन अथवा अपने गुरु के निर्देशन में ही करें। यदि साधना सही विधि से न की जाये तो इसके प्रतिकूल प्रभाव भी साधक पर पड़ सकते हैं।
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