रमा एकादशी 2022 & रमा एकादशी व्रत कथा और महत्व

Dec 22,2022 | By Admin

रमा एकादशी 2022 & रमा एकादशी व्रत कथा और महत्व

रमा एकादशी का महत्व

रमा एकादशी कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष के 11वें दिन और दीवाली से चार दिन पहले मनाई जाती है। यह कार्तिक कृष्ण एकादशी या रम्भा एकादशी जैसे अन्य नामों से भी लोकप्रिय है। रमा एकादशी व्रत का पालन करके जातक अपने पिछले पापों से मुक्ति पा सकते हैं साथ ही अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। इस व्रत को करने से प्राप्त गुण कई अश्वमेध यज्ञों और राजसुया यज्ञों द्वारा किए गए गुणों से कहीं अधिक हैं।

रमा एकादशी व्रत कथा

रमा एकादशी की कथा – पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में एक नगर में मुचुकंद नाम के एक प्रतापी राजा रहते थे, जिनकी चंद्रभागा नामक एक पुत्र थी। जब राजा की पुत्री बड़ी हो गई तो राजा ने उसका विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दिया। कथाओं में किए वर्णन के अनुसार शोभन एक समय बिना खाए नहीं रह सकता था। एक बार की बात है, कार्तिक मास के महीने में शोभन अपनी पत्नी के साथ उसके यहां यानि ससुराल आया। जिस दौरान रमा एकादशी का व्रत पड़ गया।

चंद्रभागा के गृह राज्य में सभी रमा एकादशी का नियम पूर्वक व्रत रखते थे। जिसके चलते चंद्रभागा के पति शोभन को भी ऐसा ही करने के लिए कहा गया। मगर शोभन इस बात को लेकर परेशान हो गया कि वह तो एक पल भी भूखा नहीं रह सकता है तो वह रमा एकादशी का व्रत कैसे करेगा। अपनी इस परेशानी को लेकर वह अपनी पत्नी चंद्रभागा के पास गया और उपाय बताने के लिए कहा। तब चंद्रभागा ने कहा कि अगर ऐसा है तो आपको इस राज्य से बाहर जाना पड़ेगा। क्योंकि हमारे राज्य में तो ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो इस व्रत नियम का पालन न करता हो। यहां तक कि रमा एकादशी व्रत के दिन हमारे राज्य के जीव-जंतु भी भोजन नहीं करते।

ये सुनकर शोभन को रमा एकादशी उपवास रखना पड़ा, किंतु व्रत का पारण करने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई। शोभन की पत्नी चंद्रभागा ने पति के साथ खुद को सती नहीं किया और पिता के यहां रहने लगी। उधर रमा एकादशी का व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ। एक बार की बात है कि मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचे।

सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखते ही, उन्होंने उसे पहचान लिया। ब्राह्मणों को देखकर शोभन सिंहासन से उठे और पूछा कि यह सब कैसे हुआ। तीर्थ यात्रा से लौटकर ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को यह बात बताई। जिसे सुनकर चंद्रभागा बहुत खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो गई। इसके उपरांत वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची, फिर मंदरांचल पर्वत पर पति शोभन के पास पहुंची। एकादशी व्रतों के पुण्य का फल शोभन को देते हुए उसके सिंहासन व राज्य को चिरकाल के लिए स्थिर कर दिया। ऐसा कहा जाता है इसके बाद से ही ये व्रत की परंपरा आरंभ हुई। कहा जाता है जो व्यक्ति ये व्रत को रखता उसे ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्ति मिलती है।

रमा एकादशी व्रत पूजा विधि

कार्तिक मास में तो प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठने, स्नान करने और दानादि करने का विधान है। इसी कारण प्रात: उठकर केवल स्नान करने मात्र से ही मनुष्य को जहां कई हजार यज्ञ करने का फल मिलता है, वहीं इस मास में किए गए किसी भी व्रत का पुण्यफल हजारों गुणा अधिक है। रमा एकादशी व्रत में भगवान विष्णु के पूर्णावतार भगवान जी के केशव रूप की विधिवत धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प एवं मौसम के फलों से पूजा की जाती है।

उपवास अनुष्ठान एकादशी से एक दिन पहले यानी दशमी से शुरू होता है। इस विशेष दिन, अनाज या चावल का उपभोग नहीं किया जाना चाहिए, केवल सात्त्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। इस दिन सूर्योदय के बाद कुछ भी खाने की अनुमति नहीं होती है। एकादशी की पूर्व संध्या पर, व्रत करने वाले व्रती पूरे दिन खाने या पीने से दूर रहते हैं। उपवास अगले दिन द्वादशी पर पारण के समय सम्पूर्ण होता है।

जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।

व्रत में एक समय फलाहार करना चाहिए तथा अपना अधिक से अधिक समय प्रभु भक्ति एवं हरिनाम संकीर्तन में बिताना चाहिए। शास्त्रों में विष्णुप्रिया तुलसी की महिमा अधिक है इसलिए व्रत में तुलसी पूजन करना और तुलसी की परिक्रमा करना अति उत्तम है। ऐसा करने वाले भक्तों पर प्रभु अपार कृपा करते हैं जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं सहज ही पूरी हो जाती हैं।

वैसे तो किसी भी व्रत में श्रद्धा और आस्था का होना अति आवश्यक है परंतु भगवान सदा ही अपने भक्तों के पापों का नाश करने वाले हैं इसलिए कोई भी भक्त यदि अनायास ही कोई शुभ कर्म करता है तो प्रभु उससे भी प्रसन्न होकर उसके किए पापों से उसे मुक्त करके उसका उद्धार कर देते हैं। जो भक्त प्रभु की भक्ति श्रद्धा और आस्था के साथ करते हैं उनके सभी कष्टों का निवारण प्रभु अवश्य करते हैं क्योंकि इस दिन किए गए पुण्य कर्म में श्रद्धा, भक्ति एवं आस्था से ही मनुष्य को स्थिर पुण्य फल की प्राप्ति हो सकेगी।

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