जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज की जीवनी & Kripalu ji Maharaj

Dec 22,2022 | By Admin

जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज की जीवनी & Kripalu ji Maharaj

जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज – Shri Kripalu ji Maharaj Biography

श्री कृपालु जी महाराज जी (kripalu ji maharaj) का जन्म सन् 1922 में शरद पूर्णिमा की मध्यरात्रि में भारत के उत्तर प्रदेश प्रांत के प्रतापगढ़ जिले के मनगढ़ ग्राम में सर्वोच्च ब्राम्हण कुल में हुआ था। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का कोई गुरु नहीं है और वे स्वयं ही ‘जगदगुरुत्तम’ हैं।

ये पहले जगदगुरु हैं, जिन्होंने एक भी शिष्य नहीं बनाया, किन्तु इनके लाखों अनुयायी हैं। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज वर्तमान काल में मूल जगद्गुरु हैं, यों तो भारत के इतिहास में इनके पूर्व लगभग तीन हजार वर्ष में चार और मौलिक जगदगुरु हो चुके हैं, किन्तु श्री कृपालु जी महाराज के जगदगुरु होने में एक अनूठी विशेषता यह है की उन्हें ‘जगदगुरुत्तम’ की उपाधि से विभूषित किया गया है।

यह अलौकिक और ऐतिहासिक घटना 14 जनवरी, सन् 1957 को हुई थी, जब श्री कृपालु जी महाराज जी की आयु केवल 33 वर्ष थी। सभी महान संतों ने मन से ईश्वर भक्ति की बात बताई है, जिसे ध्यान, सुमिरन, स्मरण या मेडिटेशन आदि नामों से बताया गया है। श्री कृपालु जी ने पहली बार इस ध्यान को रूप ध्यान नाम देकर स्पष्ट किया कि ध्यान की सार्थकता तभी है, जब हम भगवान के किसी मनोवांछित रूप का चयन करके उस रूप पर ही मन को टिका कर रखे।

अपने ननिहाल मनगढ़ में जन्मे राम कृपालु त्रिपाठी ने गांव के ही मध्य विद्यालय से 7 वीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिये महू, मध्य प्रदेश चले गये। अपने ननिहाल में ही पत्नी पद्मा के साथ गृहस्थ जीवन की शुरूआत की और राधा कृष्ण की भक्ति में तल्लीन हो गये। भक्ति योग पर आधारित इनके प्रवचन सुनने भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचने लगे। फिर तो उनकी ख्याति देश के अलावा विदेश तक जा पहुँची, इनके परिवार में दो बेटे घनश्याम व बालकृष्ण त्रिपाठी हैं। इसके अलावा तीन बेटियाँ विशाखा, श्यामा व कृष्णा त्रिपाठी हैं। जगद्गुरु कृपालु महाराज का 15 नवम्बर, 2013 गुड़गाँव के फोर्टिस अस्पताल में निधन हो गया।

महाराज जी ऐसे पहले जगदगुरु हैं, जो समुद्र पार, विदेशों में प्रचार में जा चुके हैं, ये पहले जगदगुरु हैं, जो 90  वर्ष की आयु में भी समस्त उपनिषदों, पुराणों, ब्रह्मसूत्र, गीता आदि प्रमाणों के नंबर इतनी तेज गति से बोलते थे कि श्रोताओं को स्वीकार करना पड़ा कि ये श्रोत्रिय ब्रम्हनिष्ठ के मूर्तिमान स्वरुप हैं। इनका वास्तविक नाम रामकृपालु त्रिपाठी था, इन्होंने जगद्गुरु कृपालु परिषद् के नाम से एक वैश्विक हिन्दू संगठन की स्थापना की थी। इस संगठन के वर्तमान में पांच मुख्य आश्रम पूरे विश्व में स्थापित हैं।

प्राक्तन में महारासिकों ने जिस ब्रज रस की वर्षा की है उसी ब्रज रस को पात्र अपात्र का विचार किये बिना जगदगुरु कृपालु जी ने सभी को पिलाया. प्रेमावतार श्री कृपालु जी ने बिना जाति-पांति, साधू, असाधु, पात्र-अपात्र का विचार किये श्रीकृष्ण प्रेम प्रदान कर करुणा की पराकाष्ठा प्रकाशित करके अपने ”कृपालु” नाम को चरितार्थ कर दिया..

जो सिद्धांत आज से 500  वर्ष पूर्व श्री चैतन्य महाप्रभु ने सिद्धांत रूप में प्रकट किये थे वही अब पूर्ण रूप में प्रकट किये गए हैं. प्रेमाभक्ति के इन दोनों आचार्यों ने श्री राधा नाम सुधा रस जैसे अमूल्य खजाने को बिना किसी मूल्य के जन जन तक पहुचाया है.. श्री कृपालु जी महाराज के द्वारा आचारित, प्रचारित एवं प्रसारित भक्ति एवं प्रेमरस सिद्धांत को देखकर सभी भक्त गुरुदेव को युगलावतार गौरांग महाप्रभु के रूप में ही देखते हैं, जिन जिन सिद्धांतो पर चैतन्य महाप्रभु ने उस अवतार काल में बल दिया और उनकी श्रेष्ठता सिद्ध की, उन्ही को कालान्तर में श्री कृपालु महाराज ने विस्तारित एवं स्थापित किया है |

श्री कृपालु जी का प्रवचन नूतन जलधर की गर्जना के समान है, यह नास्तिकता से पीड़ित मन की व्यथा को हरने वाला है. प्रवचन को सुनकर चित्त रुपी वनस्थली दिव्य भगवदीय ज्ञान के अंकुर को जन्म देती है, कुतर्क युक्त विचारों से विक्षिप्त तथा दुर्भावना से पीड़ित मनुष्यों की रक्षा करने में श्री कृपालु जी महाराज अमृत औषधि के समान हैं. उनकी सदा ही जय हो |

प्रेम मन्दिर की अवधारणा

भगवान कृष्ण और राधा के मन्दिर के रूप में बनवाया गया प्रेम मन्दिर कृपालु महाराज की ही अवधारणा का परिणाम है। भारत में मथुरा के समीप वृंदावन में स्थित इस मन्दिर के निर्माण में 11 वर्ष का समय और लगभग सौ करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इटैलियन संगमरमर का प्रयोग करते हुए इसे राजस्थान और उत्तर प्रदेश के एक हजार शिल्पकारों ने तैयार किया। इस मन्दिर का शिलान्यास स्वयं कृपालुजी ने ही किया था। यह मन्दिर प्राचीन भारतीय शिल्पकला का एक उत्कृष्ट नमूना है।

मन्दिर वास्तुकला के माध्यम से दिव्य प्रेम को साकार करता है। सभी वर्ण, जाति तथा देश के लोगों के लिये हमेशा खुले रहने वाले इसके दरवाज़े सभी दिशाओं में खुलते है। मुख्य प्रवेश द्वार पर आठ मयूरों के नक्काशीदार तोरण हैं एवं सम्पूर्ण मन्दिर की बाहरी दीवारों को राधा-कृष्ण की लीलाओं से सजाया गया है। मन्दिर में कुल 94 स्तम्भ हैं जो राधा-कृष्ण की विभिन्न लीलाओं से सजाये गये हैं। अधिकांश स्तम्भों पर गोपियों की मूर्तियाँ अंकित हैं।

Tags : Mantra

Category : Mantra


whatsapp
whatsapp