गजेंद्र मोक्ष का पाठ हिंदी में & Gajendra Moksha Stotra

Dec 22,2022 | By Admin

गजेंद्र मोक्ष का पाठ हिंदी में & Gajendra Moksha Stotra

गजेन्द्र मोक्ष – Gajendra Moksha in Hindi

Gajendra Moksha Hindi – श्रीमद्भागवत के अष्टम स्कन्ध में गजेन्द्र मोक्ष (Gajendra Moksha Stotra) की कथा है । द्वितीय अध्याय में ग्राह के साथ गजेन्द्र के युद्ध का वर्णन है, तृतीय अध्याय में गजेन्द्रकृत भगवान के स्तवन और गजेन्द्र मोक्ष का प्रसंग है और चतुर्थ अध्याय में गज ग्राह के पूर्व जन्म का इतिहास है । आज बहुत से ज्योतिषों ,धार्मिक गुरु और कई तरह के अन्य स्त्रोतों से कर्ज से मुक्त होने के लिये गजेंद्र मोक्ष के पाठ को करने का सुझाव दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसका पाठ करने से पित्तर दोष से मुक्ति मिलती है. जो लोग कर्ज से परेशान हैं और उनके लिये कर्ज चुकाना अत्यंत कठिन हैं उन्हें भी गजेंद्र मोक्ष के पाठ से समस्या का समाधान मिलता है

श्री शुकदेव जी ने कहा –

यों निश्चय कर व्यवसित मति से मन प्रथम हृदय से जोड लिया ।

गजेन्द्र बोला –

मन से है ऊँ नमन प्रभु को जिनसे यह जड चेतन बनता ।

जिसमें, जिससे, जिसके द्वारा जग की सत्ता, जो स्वयं यही ।

अपने में ही अपनी माया से ही रचे हुए संसार ।

लोक, लोकपालों का, इन सबके कारण का भी संहार ।

देवता तथा ऋषि लोग नही जिनके स्वरूप को जान सके ।

जो साधु स्वाभवी , सर्व सुहृद वे मुनिगण भी सब सग छोड ।

जिसका होता है जन्म नही, केवल होता भ्रम से प्रतीत ।

उस परमेश्वर, उस परमब्रह्म, उस अमित शक्ति को नमस्कार ।

परमात्मा जो सबका साक्षी, उस आत्मदीप को नमस्कार ।

बन सतोगुणी सुनिवृत्तिमार्ग से पाते जिसको विद्वज्जन ।

जो शान्त, घोर, जडरूप प्रकट होते तीनों गुण धर्म धार ।

सबके स्वामी, सबके साक्षी, क्षेत्रज्ञ ! तुझे है नमस्कार ।

इन्द्रिय विषयों का जो दृष्टा, इन्द्रियानुभव का जो कारन ।

सबके कारण निष्कारण भी, हे विकृतिरहित सबके कारण ।

जो ज्ञानरूप से छिपा गुणों के बीच, काष्ठ में यथा अनल ।

जो मेरे जैसे शरणागत जीवों का हरता है बंधन ।

जिसका मिलना है सहज नही, उन लोगों को जो सदा रमें ।

जिनको विमोक्ष-धर्मार्थ काम की इच्छा वाले जन भज कर ।

जिनके अनन्य जन धर्म, अर्थ या काम मोक्ष पुरुषार्थ-सकल ।

जो अविनाशी, जो सर्व व्याप्त. सबका स्वामी, सबके ऊपर ।

उत्पन्न वेद, ब्रह्मादि देव, ये लोक सकल , चर और अचर ।

ज्यों ज्वलित अग्नि से चिंगारी, ज्यों रवि से किरणें निकल निकल ।

वह नही देव, वह असुर नही, वह नही मर्त्य वह क्लीब नही ।

कुछ चाह न जीवित रहने की जो तमसावृत बाहर-भीतर –

उस विश्व सृजक , अज, विश्व रूप, जग से बाहर जग-सूत्रधार ।

निज कर्मजाल को, भक्ति योग से जला, योग परिशुद्ध हृदय ।

हो सकता सहन नही जिसकी त्रिगुणात्मक शक्ति का वेग प्रबल ।

अनभिज्ञ जीव जिसकी माय, कृत अहंकार द्वारा उपहत ।

श्री शुकदेव जी ने कहा –

यह निराकार-वपु भेदरहित की स्तुति गजेन्द्र वर्णित सुनकर ।

वे देख उसे इस भाँति दुःखी , उसका यह आर्त्तस्तव सुनकर ।

अतिशय बलशाली ग्राह जिसे था पकडे हुए सरोवर में ।

पीडा में उसको पडा देख, भगवान अजन्मा पडे उतर ।

प्रश्न – गजेन्द्र मोक्ष का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?

प्रश्न – गजेंद्र मोक्ष का पाठ करने से क्या लाभ होता है?

प्रश्न – गजेन्द्र मोक्ष किसका अंश है?

प्रश्न – गजेंद्र मोक्ष कहां हुआ था?

Tags : Mantra

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