हिन्दू पञ्चाङ्ग में संवत्सर (संवत) क्या और कितने हैं?
संवत्सर एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है “वर्ष”। इसे ही आधुनिक भाषा में संवत के नाम से जानते हैं। हिन्दू पञ्चाङ्ग में कई प्रकार के संवत्सरों का वर्णन है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वर्ष के आरम्भ को संवत के रूप में जाना जाता है। वैसे तो संवत्सर का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन है किन्तु आधुनिक संवत को आरम्भ करने का श्रेय महाराज विक्रमादित्य को ही जाता है जिन्होंने प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर की सहायता से विक्रम सम्वत का आरम्भ किया जो ईसा से ५७ वर्ष पूर्व आरम्भ हुआ था।
विक्रम सम्वत के अतिरिक्त शक सम्वत भी बहुत प्रसिद्ध है और भारतीय सरकार में इसे ही आधिकारिक संवत माना गया है। ये ईसा से ७८ वर्ष बाद प्रारम्भ हुआ था। इसके अतिरिक्त वीर संवत और लोदी संवत का भी वर्णन आता है किन्तु वे अधिक प्रयोग में नहीं लाये जाते। कुल मिलाकर आधुनिक संवत्सरों में सबसे प्रसिद्ध विक्रम संवत और शक संवत ही है। ऐसा वर्णित है कि अपने नाम से संवत्सर चलाने वाले सम्राट को संवत्सर प्रारंभ करने से पूर्व अपने राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को ऋण मुक्त करना पड़ता था। महाराजा विक्रमादित्य ने भी विक्रम संवत प्रारम्भ करने से पूर्व ऐसा ही किया।
हिन्दू संवत्सर में भी १२ मास ही होते हैं। ये हैं – चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्र, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ एवं फाल्गुन। ये १२ मास क्रमशः अंग्रेजी कैलेंडर के मार्च, अप्रैल, मई, जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर, नवम्बर, दिसंबर, जनवरी एवं फरवरी के समकक्ष हैं। किन्तु हिन्दू संवत्सर अत्यंत ही प्राचीन है। किन्तु यदि अभी हम उतना पीछे ना जाएँ तो भी संवतों को मुख्यतः दो भागों में विभक्त किया जा सकता है – प्राचीन संवत एवं आधुनिक संवत। विक्रम संवत के बाद के संवतों को आधुनिक संवत माना जाता है।
भारतीय संवत्सर मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं
1.सावन: ये सर्वाधिक प्राचीन संवत्सर है। इसके अनुसार एक वर्ष में ३६० दिन होते हैं। ध्यान रहे कि हमारी जितनी भी पौराणिक काल गणना है जैसे कि युग, महायुग, मन्वन्तर, कल्प, ब्रह्मा की आयु इत्यादि, उन सभी की गणना ३६० दिनों के हिसाब से ही की जाती है।
2.चंद्र: यह संवत्सर ३५४ दिनों का होता है। इसमें भी मूलतः १२ मास ही होते हैं किन्तु कम दिनों के कारण निश्चित वर्षों के बाद एक वर्ष १३ मास का होता है। इसमें एक मास कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक माना जाता है।
3. सौर: यह संवत ३६५ दिनों का माना जाता है। यही अंग्रेजी कैलेंडर के निर्माण का आधार भी है। यह सूर्य नारायण की मेष संक्रांति से आरम्भ होकर अगली मेष संक्रांति तक चलता है।
चलिए अब हिन्दू धर्म के अनुसार अत्यंत प्राचीन संवतों का भी वर्णन देख लेते हैं। हिन्दू धर्म में कई प्राचीन संवतों का वर्णन है किन्तु इनमें से भी जो सर्वाधिक प्राचीन है उसका नाम है ब्रह्म संवत। इसका आरम्भ वर्तमान ब्रह्मा के साथ ही होता है। पुराणों के अनुसार वर्तमान ब्रह्मा की आयु लगभग १५५५२१९७१९६१६४२ (पंद्रह नील पचपन खरब इक्कीस अरब सत्तानवे करोड़ उन्नीस लाख इकसठ हजार छः सौ बयालीस) वर्ष हो चुकी है। तो इस प्रकार ब्रह्म संवत भी उतना ही प्राचीन हुआ।
ब्रह्म संवत के बाद जो तीन सबसे प्राचीन सम्वत हैं वो हैं – कल्पाब्द संवत, सृष्टि सम्वत एवं श्रीराम संवत। ये तीनों प्रसिद्ध हैं किन्तु कई संवत्सर इनसे भी प्राचीन हैं। भगवान विष्णु के दशावतार के सभी दस अवतारों के नाम पर १० संवत्सर चले। इन १० अवतारों के अतिरिक्त भी कई और संवत्सर चले, जो चारों युगों में विभक्त हैं। इनमें से सबसे प्रमुख हैं –
सतयुग
1. ब्रह्म संवत: १५५५२१९७१९६१६४२ (पंद्रह नील पचपन खरब इक्कीस अरब सत्तानवे करोड़ उन्नीस लाख इकसठ हजार छः सौ बयालीस) वर्ष
त्रेतायुग
1. वामन संवत
द्वापर युग
1. बलराम संवत: ५२४८ (पांच हजार दो सौ अड़तालीस) वर्ष
कलियुग
1. बौद्ध संवत: २५९६ (दो हजार पांच सौ छियानवे) वर्ष
इनके अतिरिक्त परमपिता ब्रह्मा के आधे दिन (कल्प) में जो १४ मनु शासन करते हैं उनके नाम पर भी मन्वन्तर संवत पड़ते हैं। ये हैं – स्वयंभू, स्वरोचिष, उत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत (वर्तमान), सावर्णि, दक्ष सावर्णि, ब्रह्म सावर्णि, धर्म सावर्णि, रूद्र सावर्णि, देव सावर्णि एवं इन्द्र सावर्णि।
अब बात करते हैं संवतों के चक्र की। हिन्दू धर्म में संवतों का चक्र ६० वर्षों में बटा हुआ है। अर्थात पुराणों के अनुसार हिन्दू धर्म में कुल ६० संवत्सर हैं। प्रत्येक ६० वर्ष पश्चात पुनः प्रथम संवत्सर प्रारम्भ होता है। अर्थात यदि आपको वर्तमान संवत्सर इससे पहले कब पड़ा, ये जानना हो तो वर्तमान वर्ष में ६० घटा दें। उदाहरण के लिए २०२१ आनंद संवत्सर है। इसका अर्थ ये है कि इससे पहले आनंद संवत्सर २०२१ – ६० = १९६१ में पड़ा होगा और अगला आनंद संवत्सर २०२१ + ६० = २०८१ में पड़ेगा।
ये सभी ६० संवत्सर २०-२० के समूह में क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और महेश को समर्पित होते हैं। अर्थात प्रभव से व्यय ब्रह्मा को, सर्वजित से पराभव विष्णु को एवं प्लवंग से अक्षय महादेव को। ये सभी संवत्सर हैं –
1. प्रभव: १९७४ – १९७५ ई.
यदि आप हिन्दू संवत के अतिरक्त अन्य सम्वत देखें तो आप पाएंगे कि चीनी संवत सबसे प्राचीन है, किन्तु हिंदू संवत के आस पास भी नहीं। कुछ प्रमुख विदेशी संवत हैं –
1. चीनी सन: ९६००२३१९ वर्ष
आशा है इस लेख को पढ़ने के बाद आपको समझ में आ गया होगा कि सनातन हिन्दू धर्म कितना प्राचीन और वैज्ञानिक है।
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