सर्वपितृ अमावस्या का महत्व और पितरो के निम्मित किये जाने वाले उपाय

Dec 22,2022 | By Admin

सर्वपितृ अमावस्या का महत्व और पितरो के निम्मित किये जाने वाले उपाय

सर्वपितृ अमावस्या आश्विन माह की अमावस्या को कहा जाता है। आश्विन माह का कृष्ण पक्ष वह विशिष्ट काल है, जिसमें पितरों के लिये तर्पण और श्राद्ध आदि किये जाते है। आश्विन मास की अमावस्या ‘पितृपक्ष’ के लिए उत्तम मानी गई है। इस अमावस्या को ‘सर्वपितृ अमावस्या’ या ‘पितृविसर्जनी अमावस्या’ या ‘महालय समापन’ या ‘महालय विसर्जन’ आदि नामों से जाना जाता है। यूँ तो शास्त्रोक्त विधि से किया हुआ श्राद्ध सदैव कल्याणकारी होता है, परन्तु जो लोग शास्त्रोक्त समस्त श्राद्धों को न कर सकें, उन्हें कम से कम आश्विन मास में पितृगण की मरण तिथि के दिन श्राद्ध अवश्य ही करना चाहिए।

जो व्यक्ति पितृपक्ष के पन्द्रह दिनों तक श्राद्ध, तर्पण आदि नहीं कर पाते हैं और जिन पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो, उन सबके श्राद्ध, तर्पण इत्यादि इसी अमावस्या को किये जाते है। इसलिए सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितर अपने पिण्डदान एवं श्राद्ध आदि की आशा से विशेष रूप से आते हैं। यदि उन्हें वहाँ पिण्डदान या तिलांजलि आदि नहीं मिलती तो वे अप्रसन्न होकर चले जाते हैं, जिससे आगे चलकर पितृदोष लगता है और इस कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

सर्वपितृ अमावस्या पितरों को विदा करने की अंतिम तिथि होती है। 15 दिन तक पितृ घर में विराजते हैं और हम उनकी सेवा करते हैं। ‘सर्वपितृ अमावस्या’ के दिन सभी भूले-बिसरे पितरों का श्राद्ध कर उनसे आशीर्वाद की कामना की जाती है। ‘सर्वपितृ अमावस्या’ के साथ ही 15 दिन का श्राद्ध पक्ष खत्म हो जाता है। लेकिन अगर इस दिन अगर हम पितरो के निम्मित कुछ उपाय भी करे तो निसंदेह पितरो का आशीर्वाद सदैव हमारे घर परिवार पर बना रहता है और सभी सदस्यों के जीवन में चहुमुखी सफलता मिलने लगती है और मानसिक शांति का अनुभव होता है –

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