भगवान राम और हनुमान जी का प्रेरणात्मक संवाद
बहुत सुन्दर और ज्ञान वर्धक प्रसंग, जरूर पढ़े
1 हनुमान जी जब संजीवनी बुटी का पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है। प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था, बल्कि मेरा भ्रम दूर करने के लिए भेजा था। और आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मै ही आपका राम नाम का जप करने वाला सबसे बड़ा भक्त हूँ।
भगवान बोले कैसे ?
मै जब संजीवनी लेकर लौट रहा था तब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मै गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया. कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, उन्होने कहा कि यदि मन, वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो, यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित होकर स्वस्थ हो जाए।उनके इतना कहते ही मै उठ बैठा ।सच कितना भरोसा है भरत जी को आपके नाम पर।
शिक्षा :-
दूसरी बात प्रभु!
बाण लगते ही मै गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मै अभिमान कर रहा था कि मै उठाये हुए हूँ. मेरा दूसरा अभिमान भी टूट गया।
शिक्षा :-
फिर हनुमान जी कहते है :-
एक और बात प्रभु ! आपके तरकस में भी ऐसा बाण नहीं है जैसे बाण भरत जी के पास है। आपने सुबाहु, मारीच को बाण से बहुत दूर गिरा दिया। आपका बाण तो आपसे दूर कर देता है, पर भरत जी का बाण तो आपके चरणों में ला देता है । उन्होने अपने बाण पर बैठाकर मुझे आपके पास भेज दिया।
भगवान बोले :- हनुमान, जब मैंने ताडका को तथा और भी राक्षसों को मारा तो वे सब मरकर मुक्त होकर मेरे ही पास आये ।
शिक्षा :-
शिक्षा :-
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