गुरु मंत्र, श्लोक तथा स्त्रोत & गुरु मंत्र की महिमा, गुरु मंत्र कब लेना चाहिए
गुरु मंत्र – Guru Mantra in Hindi
गुरु मंत्र (Guru Mantra) गुरुमुख से प्राप्त हो तो, सफलता का वरदान मानिये, सच्चे गुरु मंत्र (Guru Stotram & Guru Slokam) के जप व साधन का मार्ग जान सकें तो आप भी प्राचीन काल के धर्मात्मा लोगों के समान संसार में सुखपूर्वक रहते हुए भी परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं।
गुरु मंत्र लिखा हुआ – Guru Mantra Lyrics
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:।
अर्थ : गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हीं शिव है; गुरु हीं साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम है |
धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः ।
भावार्थ : धर्म को जाननेवाले, धर्म के अनुसार आचरण करने वाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करने वाले गुरु कहे जाते हैं ।
दुग्धेन धेनुः कुसुमेन वल्ली शीलेन भार्या कमलेन तोयम् ।
भावार्थ : जैसे दूध बगैर गाय, फूल बगैर लता, शील बगैर भार्या, कमल बगैर जल, शम बगैर विद्या, और लोग बगैर नगर शोभा नहीं देते, वैसे हि गुरु बिना शिष्य शोभा नहीं देता ।
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।
भावार्थ : गुरु और गोविन्द (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए, गुरु को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरु के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है, जिनकी कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
सतगुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खण्ड।
भावार्थ : सात द्वीप, नौ खण्ड, तीन लोक, इक्कीस ब्रहाण्डों में सद्गुरु के समान हितकारी आप किसी को नहीं पायेंगे।
गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई।
भावार्थ : भले ही कोई ब्रह्मा, शंकर के समान क्यों न हो, वह गुरु के बिना भव सागर पार नहीं कर सकता।
बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
भावार्थ : गुरु मनुष्य रूप में नारायण ही हैं। मैं उनके चरण कमलों की वन्दना करता हूँ। जैसे सूर्य के निकलने पर अन्धेरा नष्ट हो जाता है, वैसे ही उनके वचनों से मोहरूपी अन्धकार का नाश हो जाता है।
गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है, गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट।
भावार्थ : गुरु एक कुम्हार के समान है और शिष्य एक घड़े के समान होता है। जिस प्रकार कुम्हार कच्चे घड़े के अन्दर हाथ डालकर, उसे अन्दर से सहारा देते हुए हल्की-हल्की चोट मारते हुए उसे आकर्षक रूप देता है, उसी प्रकार एक गुरु अपने शिष्य को एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व में तब्दील करता है।
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
भावार्थ : सभी साधनों को छोड़कर केवल नारायण स्वरूप गुरु की शरणगत हो जाना चाहिए। वे उसके सभी पापों का नाश कर देंगे। शोक नहीं करना चाहिए।
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया ।
भावार्थ : जिसने ज्ञानांजनरुप शलाका से, अज्ञानरुप अंधकार से अंध हुए लोगों की आँखें खोली, उन गुरु को नमस्कार ।
गुरु मंत्र श्लोक – Guru Mantra in Sanskrit
ॐ नमः शिवाय गुरवे
श्री गुरुस्तोत्रम्: | Guru Stotram
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: ।
Guru Mantra FAQ
प्रश्न – जाने गुरु मंत्र जाप विधि
उत्तर – गुरु मंत्र नित्य ब्रह्ममुहूर्त में और सांध्य पूजन के बाद करना चाहिए, जाप की संख्या अपनी क्षमता और एकाग्रता के अनुसार काम ज्यादा कर सकते हैं। कम से कम एक माला का नित्य जरूर जाप करें।
प्रश्न – गुरु मंत्र क्या है
उत्तर – जब गुरु अपने शिष्य या साधक को उसकी आवश्यकता अनुसार उसके कान में कोई भी सिद्ध मंत्र जो गुरु ने स्वयं अपने तपोबल से अभिमंत्रित किया है, देते हैं, तो उस साधक द्वारा उस गुरु मंत्र का नियमित जाप करने पर शीघ्र ही उसके पास उस मन्त्र की शक्ति आ जाती है, और सारे परोजन सिद्ध होने लगते है ।
प्रश्न – गुरु मंत्र की महिमा
उत्तर – गुरुमंत्र एक अभिमंत्रित मंत्र है, जो गुरु अपने शिष्य को जप करने हेतु देते हैं। गुरुमंत्र के फलस्वरूप शिष्य अपनी आध्यात्मिक उन्नति करता है और अंतत: मोक्ष प्राप्ति करता है । गुरुमंत्र में जिस देवता का नाम होता है, वही देवता उस शिष्य की आध्यात्मिक प्रगति के लिए आवश्यक होते हैं।
प्रश्न – गुरु मंत्र कब लेना चाहिए
उत्तर – गुरु से दीक्षा लिए बिना जप, पूजा वगैरह सब निष्फल जाता है। इसलिए गुरु दीक्षा के तहत गुरु अपने शिष्य को एक मंत्र देते है ।जिससे शिष्य के जीवन का उद्धार हो जाता है। अतः गुरु मंत्र लेने के लिए पहले गुरु की सेवा करे और समय आने पर उनसे गुरु मंत्र दीक्षा की विनती करे
प्रश्न – शिव गुरु मंत्र
उत्तर – शिवजी को गुरु मानकर निम्न मंत्र पढ़कर श्रीगुरुदेव का आवाहन करें- ‘ॐ वेदादि गुरुदेवाय विद्महे, परम गुरुवे धीमहि, तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।।’
Tags : Mantra
Category : Mantra