घर में खुशहाली के लिए गजब के वास्तु उपाय

Dec 22,2022 | By Admin

घर में खुशहाली के लिए गजब के वास्तु उपाय

उत्तर-पूर्व में रखें पानी का बहाव

बाथरूम : – यह मकान के नैऋत्य-पश्चिम-दक्षिण कोण में एवं दिशा के मध्य अथवा नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य में होना उत्तम है। वास्तु के अनुसार पानी का बहाव उत्तर-पूर्व में रखें। जिन घरों में बाथरूम में गीजर आदि की व्यवस्था है, उनके लिए यह और जरूरी है कि वे अपना बाथरूम आग्नेय कोण में ही रखें, क्योंकि गीजर का संबंध अग्नि से है। चूँकि बाथरूम व शौचालय का परस्पर संबंध है तथा दोनों पास-पास स्थित होते हैं।

शौचालय के लिए वायव्य कोण तथा दक्षिण दिशा के मध्य या नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य स्थान को सर्वोपरि रखना चाहिए।

शौचालय में सीट इस प्रकार हो कि उस पर बैठते समय आपका मुख दक्षिण या उत्तर की ओर होना चाहिए। अगर शौचालय में एग्जास्ट फैन है, तो उसे उत्तरी या पूर्वी दीवार में रखने का निर्धारण कर लें। पानी का बहाव उत्तर-पूर्व रखें।

वैसे तो वास्तु शास्त्र-स्नान कमरा व शौचालय का अलग-अलग स्थान निर्धारित करता है,पर आजकल जगह की कमी के कारण दोनों को एक साथ रखने का रिवाज-सा चल पड़ा है।

लेकिन ध्यान रखें कि अगर बाथरूम व लैट्रिन, दोनों एक साथ रखने की जरूरत हो तो मकान के दक्षिण-पश्चिम भाग में अथवा वायव्य कोण में ही बनवाएँ या फिर आग्नेय कोण में शौचालय बनवाकर उसके साथ पूर्व की ओर बाथरूम समायोजित कर लें। स्नान गृह व शौचालय नैऋत्य व ईशान कोण में कदापि न रखें।

पश्चिम दिशा में रखें शयनकक्ष :

बैडरूम : – कई प्रकार के होते हैं। एक कमरा होता है- गृह स्वामी के सोने का एक कमरा होता है परिवार के दूसरे सदस्यों के सोने का। लेकिन जिस कमरे में गृह स्वामी सोता है, वह मुख्य कक्ष होता है। अतः यह सुनिश्चित करें कि गृह स्वामी का मुख्य कक्ष; शयन कक्ष, भवन में दक्षिण या पश्चिम दिशा में स्थित हो। सोते समय गृह स्वामी का सिर दक्षिण में और पैर उत्तर दिशा की ओर होने चाहिए।

इसके पीछे एक वैज्ञानिक धारणा भी है। पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव और सिर के रूप में मनुष्य का उत्तरी ध्रुव और मनुष्य के पैरों का दक्षिणी ध्रुव भी ऊर्जा की दूसरी धारा सूर्य करता है। इस तरह चुम्बकीय तरंगों के प्रवेश में बाधा उत्पन्न नहीं होती है। सोने वाले को गहरी नींद आती है। उसका स्वास्थ्य ठीक रहता है। घर के दूसरे लोग भी स्वस्थ रहते हैं। घर में अनावश्यक विवाद नहीं होते हैं।

यदि सिरहाना दक्षिण दिशा में रखना संभव न हो, तो पश्चिम दिशा में रखा जा सकता है। स्टडी; अध्ययन कक्ष वास्तु शास्त्र के अनुसार आपका स्टडी रूम वायव्य, नैऋत्य कोण और पश्चिम दिशा के मध्य होना उत्तम माना गया है। ईशान कोण में पूर्व दिशा में पूजा स्थल के साथ अध्ययन कक्ष शामिल करें, अत्यंत प्रभावकारी सिद्ध होगा। आपकी बुद्धि का विकास होता है। कोई भी बात जल्दी आपके मस्तिष्क में फिट हो सकती है। मस्तिष्क पर अनावश्यक दबाव नहीं रहता।

आकार-वर्गाकार :

यह भी जरूर पढ़े :

इस तरह का प्लॉट घर में निवास करने वाले को सुख और संपन्नता प्रदान करता है।

आयताकार :  इस तरह का भू खंड मालिक को आर्थिक उन्नति में अत्यन्त सहायक होता है।

अण्डाकार : इस प्रकार की भूमि क्रय करने से बचना चाहिए। इस भूमि पर निर्मित भवन में रहने पर दु:ख और अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

चक्राकार : चक्राकार जमीन का चयन यथा संभव नहीं करना चाहिए। शास्त्रानुसार इस तरह का भूखंड मालिक के धन का नाश करता है।

वृत्ताकार : समृद्धि में निरंतर वृद्धि चाहने के इच्छुक जातकों को ऎसा प्लॉट नहीं लेना

चाहिए क्योंकि इसमें निवास करने से समृद्धि कम होती है।

त्रिकोणाकार : इस आकार प्रकार का भू खंड निवास करने वाले मालिक को राजकीय समस्याएं, अस्थिरता और अग्नि भय प्रदान करता है।

अर्द्धवृत्ताकार : यह जमीन का टुकड़ा मकान मालिक और इसमें निवास करने वाले जातकों को दु:ख प्रदान करता है।

धनुषाकार : धनुषाकार प्लॉट में निर्मित भवन में निवास करने वाले जातकों में भय पैदा करता है।

समानान्तर चतुर्भुज : इस तरह के भू खंड का चयन नहीं करना चाहिए। अशुभ परिणाम देने वाला तथा दुश्मनी पैदा करने के कारण निवासी सुख से नहीं रह सकता।

गोमुखी : इस तरह का प्लॉट रहने के लिए शुभ होता है किंतु व्यापार के लिए अशुभ होता है।

सिंहमुखी : सिंहमुखी प्लॉट रहने के लिए अशुभ होता है किंतु व्यापार के लिए शुभ होता है।

आद्रता : प्राचीन समय में भूमि का आद्रता परीक्षण किया जाता था। भूमि में गbा खोदकर पानी भरा जाता था और भूमि में नमी का पता लगाया जाता था।

दिशा प्रभाव : भूमि पर चार मुखी दीपक जलाकर यह प्रयोग करके यह जानने की कोशिश की जाती थी कि यह चारों वर्णो में से किसके लिए लाभकारी रहेगी।

जीवन्तता : सभी तरह के बीजों को बोकर जमीन की उपजाऊ सामथ्र्य का अनुमान लगाया जाता था।

विकिरण : सफेद, लाल, पीले और काले रंगों के फूलों का परीक्षण करके फूलों पर रेडियम का प्रभाव देखकर आकलन किया जाता था कि यह जमीन किस वर्ण के लिए शुभ है।

वायु संचरण : धूल उड़ाकर देखा जाता था कि हवा का रूख और उसके प्रभाव क्या रहेंगे। इन परिणामों के आधार पर चारों वर्णो में से किसके लिए भू खंड उपयुक्त रहेगा, उसके अनुसार भूमि में गर्भविन्यासविधानम् के द्वारा ऊर्जा बतायी जाती थी।

विज्ञान के युग में हम लेबर एंटिना की मदद से कॉस्मिक एवं टेलटिक ऊर्जा की स्थिति का पता लगा लेते हैं। गृह स्वामी के लिए रेडिशियन कैसे हैं, पता कर लेते हैं। साथ ही हमें जिस प्रकार की ऊर्जा अलग अलग कमरों में बनानी होती है वैसी ऊर्जा हम यंत्रों, नगों, इत्रों, मिनरल्स, जडियों आदि द्वारा बनाकर घर को ऊर्जावान बनाकर सभी की कार्यक्षमता बढ़ा लेते हैं। कार्यक्षमता बढ़ने से घर में सुख-समृद्धि का आगमन और उल्लास का वातावरण बनता है। घर में किसी चीज की कमी नहीं होने से प्रेम बना रहता है।

घर के इंटीरियर में परदों की विशेष भूमिका है। अलग-अलग रंग के परदे घर को और भी ज्यादा खूबसरत बनाने में विशेष महत्व है। घर में सही रंग के परदे लगाकर आप अपने घर के वातावरण को शांतिपूर्ण बनाया जा सकता है।साथ ही अनुकूल रंग के परदे लगाने से सौभाग्य में वृद्धि होती है साथ ही प्रतिकूल परिस्थितियां अनुकूल होने लगाती है।

यह भी जरूर पढ़े :

Tags : Mantra

Category : Vastu


Vastu
whatsapp
whatsapp