उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा- जाने उत्पन्ना एकादशी की कहानी और व्रत पूजा विधि

Dec 22,2022 | By Admin

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा- जाने उत्पन्ना एकादशी की कहानी और व्रत पूजा विधि

हर मास की कृष्ण व शुक्ल पक्ष को मिलाकर दो एकादशियां आती हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। क्यों की एकादशी एक देवी थी जिनका जन्म भगवान विष्णु से हुआ था। एकादशी मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी को प्रकट हुई थी जिसके कारण इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी पड़ा। इसी दिन से एकादशी व्रत शुरु हुआ था। जो मनुष्य एकादशी को उपवास करता है, वह वैकुण्ठधाम में जाता है, जहाँ साक्षात् भगवान गरुड़ध्वज विराजमान रहते हैं ।

जो मानव हर समय एकादशी के माहात्मय का पाठ करता है, उसे हजार गौदान के पुण्य का फल प्राप्त होता है । जो दिन या रात में भक्तिपूर्वक इस माहात्म्य का श्रवण करते हैं, वे नि:संदेह ब्रह्महत्या आदि पापों से मुक्त हो जाते हैं । एकादशी के समान पापनाशक व्रत दूसरा कोई नहीं है । हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व माना जाता है इसलिये यह जानकारी होना जरूरी है कि एकादशी का जन्म कैसे और क्यों हुआ।

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा | Utpanna Ekadashi Vrat Katha

वैसे तो प्रत्येक वर्ष के बारह महीनों में 24 एकादशियां आती हैं लेकिन मलमास या कहें अधिकमास को मिलाकर इनकी संख्या 26 भी हो जाती है। सबसे पहली एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी को माना जाता हैं। चूंकि इस दिन एकादशी प्रकट हुई थी इसलिये यह दिन उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। एकादशी के जन्म लेने की कथा कुछ इस प्रकार है।

बात सतयुग की है कि चंद्रावती नगरी में ब्रह्मवंशज नाड़ी जंग राज्य किया करते थे। मुर नामक उनका एक पुत्र भी था। मुर बहुत ही बलशाली दैत्य था। उसने अपने पराक्रम के बल पर समस्त देवताओं का जीना मुहाल कर दिया। इंद्र आदि सब देवताओं को स्वर्गलोक से खदेड़कर वहां अपना अधिकार जमा लिया। कोई भी देवता उसके पराक्रम के आगे टिक नहीं पाता था। सब परेशान रहने लगे कि कैसे इस दैत्य से छुटकारा मिला। देवताओं पर जब भी विपदा आती तो वे सीधे भगवान शिव शंकर के पास पंहुचते। इस बार भी ऐसा ही हुआ। इंद्र के नेतृत्व में समस्त देवता कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के पास पंहुची और अपनी व्यथा सुनाई।

भगवान शिव ने उनसे कहा कि भगवान विष्णु ही इस कार्य में उनकी सहायता कर सकते हैं। अब सभी देवता क्षीर सागर पंहुचे जहां श्री हरि विश्राम कर रहे थे। जैसे ही उनकी आंखे खुली तो देवताओं को सामने पाकर उनसे आने का कारण पूछा। देवताओं ने दैत्य मुर के अत्याचार की समस्त कहानी कह सुनाई। भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वासन देकर भेज दिया। इसके बाद हजारों साल तक युद्ध मुर और श्री हरि के बीच युद्ध होता रहा लेकिन मुर की हार नहीं हुई। भगवान विष्णु को युद्ध के बीच में ही निद्रा आने लगी तो वे बद्रीकाश्रम में हेमवती नामक गुफा में शयन के लिये चले गये। उनके पिछे-पिछ मुर भी गुफा में चला आया। भगवान विष्णु को सोते हुए देखकर उन पर वार करने के लिये मुर ने जैसे ही हथियार उठाये श्री हरि से एक सुंदर कन्या प्रकट हुई जिसने मुर के साथ युद्ध किया।

सुंदरी के प्रहार से मुर मूर्छित हो गया जिसके बाद उसका सर धड़ से अलग कर दिया गया। इस प्रकार मुर का अंत हुआ जब भगवान विष्णु नींद से जागे तो सुंदरी को देखकर वे हैरान हो गये। जिस दिन वह प्रकट हुई वह दिन मार्गशीर्ष मास की एकादशी का दिन था इसलिये भगवान विष्णु ने इनका नाम एकादशी रखा और उससे वरदान मांगने की कही। तब एकादशी ने मांगा कि जब भी कोई मेरा उपवास करे तो उसके समस्त पापों का नाश हो। तब भगवान विष्णु ने एकादशी को वरदान दिया कि आज से प्रत्येक मास की एकादशी का जो भी उपवास रखेगा उसके समस्त पापों का नाश होगा और विष्णुलोक में स्थान मिलेगा। मुझे सब उपवासों में एकादशी का उपवास प्रिय होगा। तब से लेकर वर्तमान तक एकादशी व्रत का माहात्म्य बना हुआ है।

कब करें एकादशी उपवास की शुरुआत – Utpanna Ekadashi Vrat

जो व्रती एकादशी के उपवास को नहीं रखते हैं और इस उपवास को लगातार रखने का मन बना रहे हैं तो उन्हें मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी अर्थात उत्पन्ना एकादशी से इसका आरंभ करना चाहिये क्योंकि सर्वप्रथम हेमंत ऋतु में इसी एकादशी से इस व्रत का प्रारंभ हुआ माना जाता है। 2022 में उत्पन्ना एकादशी का व्रत 20 नवंबर को है।

उत्पन्ना एकादशी व्रत व पूजा विधि – Utpanna Ekadashi Vrat Puja Vidhi

एकादशी के व्रत की तैयारी दशमी तिथि को ही आरंभ हो जाती है। उपवास का आरंभ दशमी की रात्रि से ही आरंभ हो जाता है। इसमें दशमी तिथि को सायंकाल भोजन करने के पश्चात अच्छे से दातुन कुल्ला करना चाहिये ताकि अन्न का अंश मुंह में शेष न रहे। इसके बाद रात्रि को बिल्कुल भी भोजन न करें। अधिक बोलकर अपनी ऊर्जा को भी व्यर्थ न करें। रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें।

नित्य क्रियाओं से निपटने के बाद स्नानादि कर स्वच्छ हो लें। भगवान का पूजन करें, व्रत कथा सुनें। दिन भर व्रती को बुरे कर्म करने वाले पापी, दुष्ट व्यक्तियों की संगत से बचना चाहिये। रात्रि में भजन-कीर्तन करें। जाने-अंजाने हुई गलतियों के लिये भगवान श्री हरि से क्षमा मांगे। द्वादशी के दिन प्रात:काल ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन करवाकर उचित दान दक्षिणा देकर फिर अपने व्रत का पारण करना चाहिये। इस विधि से किया गया उपवास बहुत ही पुण्य फलदायी होता है।

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