हरतालिका तीज व्रत, कथा एवं पूजा विधी

Dec 22,2022 | By Admin

हरतालिका तीज व्रत, कथा एवं पूजा विधी

Hartalika Teej Vrat, Katha Aur Puja Vidhi 

Hartalika Teej Vrat – यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होता है। इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियाँ गौरी-शंकर की पूजा (Hartalika Teej Vrat Puja) कर, उनकी कथा (Hartalika Teej Katha) सुनती हैं।

यह त्योहार करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवाचौथ में चांद देखने के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।

सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था। इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।

हरतालिका तीज व्रत कथा – Hartalika Teej katha 

कथानुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्तकरने के लिए पर्वतराज हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया | इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया| कई अवधि तक सूखे पत्ते चबाकर काटी और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा का सेवन करके जीवन व्यतीत किया| माता पार्वती के इस अवस्था को देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे|

इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया| पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी|

फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं| तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की अराधना में लीन हो गई|

भाद्रपद तृतीया शुक्ल के हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया| तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और फिर माता के इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया| मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं|

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हरतालिका के व्रत से जुड़ी कई मान्यता हैं, जिनमे जो व्रती इस व्रत के दौरान जो सोती हैं, वो अगले जन्म में अजगर बनती हैं, जो दूध पीती हैं, वो सर्पिनी बनती हैं, जो व्रत नही करती वो विधवा बनती हैं, जो शक्कर खाती हैं मक्खी बनती हैं, जो मांस खाती शेरनी बनती हैं, जो जल पीती हैं वो मछली बनती हैं, जो अन्न खाती हैं वो सुअरी बनती हैं जो फल खाती है वो बकरी बनती हैं | इस प्रकार के कई मत सुनने को मिलते हैं |

 हरतालिका तीज पूजन विधी – Hartalika Teej Pujan Vidhi

हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं, प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय |

हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से हाथों से बनाई जाती हैं |

फुलेरा बनाकर उसे सजाया जाता हैं, उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर पटा अथवा चौकी रखी जाती हैं, चौकी पर एक सातिया बनाकर उस पर थाल रखते हैं, उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं |

तीनो प्रतिमा को केले के पत्ते पर आसीत किया जाता हैं |

सर्वप्रथम कलश बनाया जाता हैं जिसमे एक लौटा अथवा घड़ा लेते हैं, उसके उपर श्रीफल रखते हैं, अथवा एक दीपक जलाकर रखते हैं, घड़े के मुंह पर लाल नाडा बाँधते हैं, घड़े पर सातिया बनाकर उर पर अक्षत चढ़ाया जाता हैं |

कलश का पूजन किया जाता हैं . सबसे पहले जल चढ़ाते हैं, नाडा बाँधते हैं, कुमकुम, हल्दी चावल चढ़ाते हैं फिर पुष्प चढ़ाते हैं |

कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं |

उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती हैं |

उसके बाद माता गौरी की पूजा की जाती हैं, उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं |

इसके बाद हरतालिका की कथा पढ़ी जाती हैं |

फिर सभी मिलकर आरती की जाती हैं जिसमे सर्प्रथम गणेश जी कि आरती फिर शिव जी की आरती फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं |

पूजा के बाद भगवान् की परिक्रमा की जाती हैं |

इस व्रत के व्रती को शयन का निषेध है, रात भर जागकर पांच पूजा एवं आरती की जाती हैं| रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करना पड़ता है।

सुबह आखरी पूजा के बाद माता गौरा को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं, उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं |

ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं, उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडा जाता हैं |

अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं |

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