द्वारकाधीश यात्रा & चारो धाम और सप्तपुरियों में से एक पवित्र तीर्थ

Dec 22,2022 | By Admin

द्वारकाधीश यात्रा & चारो धाम और सप्तपुरियों में से एक पवित्र तीर्थ

गुजरात का द्वारका (Dwarka in Gujrat) शहर वह स्थान है जहाँ 5000 वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद द्वारका (Dwarkadhish Mandir) नगरी बसाई थी और भगवान कृष्ण के राज्य की प्राचीन और पौराणिक राजधानी कहा जाता है। जिस स्थान पर उनका निजी महल ‘हरि गृह’ था वहाँ आज प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर (Dwarkadhish Mandir) है।

इसलिए कृष्ण भक्तों की दृष्टि में यह एक महान तीर्थ है। 8वीं शताब्दी के हिन्दू धर्मशास्त्रज्ञ और दार्शनिक आदि शंकराचार्य के बाद, मंदिर भारत में हिंदुओं द्वारा पवित्र माना गया ‘चार धाम’ तीर्थ का हिस्सा बन गया। अन्य तीनों में रामेश्वरम, बद्रीनाथ और जगन्नाथ पुरी शामिल हैं, यही नहीं द्वारका नगरी पवित्र सप्तपुरियों में से एक है।

द्वारका मंदिर का इतिहास – Dwarka History

मान्यता है कि इस स्थान पर मूल मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने करवाया था। कालांतर में मंदिर का विस्तार एवं जीर्णोद्धार होता रहा। मंदिर को वर्तमान स्वरूप 16वीं शताब्दी में प्राप्त हुआ था। द्वारिकाधीश मंदिर (dwarkadhish temple) से लगभग 2 किमी दूर एकांत में रुक्मिणी का मंदिर है। कहा जाता है कि उस समय भारत में बाहर से आए आक्रमणकारियों का सर्वत्र भय व्याप्त था, क्योंकि वे आक्रमणकारी न सिर्फ़ मंदिरों कि अतुल धन संपदा को लूट लेते थे बल्कि उन भव्य मंदिरों व मुर्तियों को भी तोड कर नष्ट कर देते थे। तब मेवाड़ यहाँ के पराक्रमी व निर्भीक राजाओं के लिये प्रसिद्ध था। आज भी द्वारका (dwarka) की महिमा है। यह चार धामों में एक है। इसकी सुन्दरता बखानी नहीं जाती। समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें उठती है और इसके किनारों को इस तरह धोती है, जैसे इसके पैर पखार रही हों।

द्वारका का वास्तु : Dwarkadheesh Vastu

यह मंदिर एक परकोटे से घिरा है जिसमें चारों ओर एक द्वार है। इनमें उत्तर दिशा में स्थित मोक्ष द्वार तथा दक्षिण में स्थित स्वर्ग द्वार प्रमुख हैं। सात मंज़िले मंदिर का शिखर 235 मीटर ऊँचा है। इसकी निर्माण शैली बड़ी आकर्षक है। शिखर पर क़रीब 84 फुट लम्बी बहुरंगी धर्मध्वजा फहराती रहती है। द्वारकाधीश मंदिर (dwarka temple) के गर्भगृह में चाँदी के सिंहासन पर भगवान कृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा विराजमान है।

यहाँ इन्हें ‘रणछोड़ जी’ भी कहा जाता है। भगवान ने हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हैं। बहुमूल्य अलंकरणों तथा सुंदर वेशभूषा से सजी प्रतिमा हर किसी का मन मोह लेती है। द्वारकाधीश मंदिर (dwarkadhish temple) के दक्षिण में गोमती धारा पर चक्रतीर्थ घाट है। उससे कुछ ही दूरी पर अरब सागर है जहाँ समुद्रनारायण मंदिर स्थित है। इसके समीप ही पंचतीर्थ है। वहाँ पाँच कुओं के जल से स्नान करने की परम्परा है। बहुत से भक्त गोमती में स्नान करके मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। यहाँ से 56 सीढ़ियाँ चढ़ कर स्वर्ग द्वार से मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर के पूर्व दिशा में शंकराचार्य द्वार स्थापित शारदा पीठ स्थित है।

द्वारका  शारदा पीठ – Dwarka Sharda Peeth

यह भारत की सात पवित्र पुरियों में से एक हैं,जिनकी सूची निम्नांकित है:

अयोध्या मथुरा माया काशी काशी अवन्तिका।

गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित चार धामों (char dham yatra) में से एक धाम और सात पवित्र पुरियों में से एक पुरी है। तीर्थयात्रा में यहाँ आकर गोपीचन्दन लगाना और चक्राक्डित होना विशेष महत्त्व का समझा जाता है। कृष्ण के अन्तर्धान होने के पश्चात प्राचीन द्वारकापुरी समुद्र में डूब गयी। केवल भगवान का मन्दिर समुद्र ने नहीं डुबाया। वस्तुत: द्वारका दो हैं

कुशस्थली – Kushasthali

द्वारका का प्राचीन नाम है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था। बाद में त्रिविकम भगवान ने कुश नामक दानव का वध भी यहीं किया था। त्रिविक्रम का मंदिर द्वारका में रणछोड़जी के मंदिर के निकट है। ऐसा जान पड़ता है कि महाराज रैवतक (बलराम की पत्नी रेवती के पिता) ने प्रथम बार, समुद्र में से कुछ भूमि बाहर निकाल कर यह नगरी बसाई होगी।

विष्णु पुराण के अनुसार,अर्थात् आनर्त के रेवत नामक पुत्र हुआ जिसने कुशस्थली नामक पुरी में रह कर आनर्त पर राज्य किया। विष्णु पुराण से सूचित होता है कि प्राचीन कुशावती के स्थान पर ही श्रीकृष्ण ने द्वारका बसाई थी, महाभारत, के अनुसार कुशस्थली रैवतक पर्वत से घिरी हुई थी, जरासंध के आक्रमण से बचने के लिए श्रीकृष्ण मथुरा से कुशस्थली आ गए थे और यहीं उन्होंने नई नगरी द्वारका बसाई थी। पुरी की रक्षा के लिए उन्होंने अभेद्य दुर्ग की रचना की थी जहां रह कर स्त्रियां भी युद्ध कर सकती थीं |

रुक्मणि मंदिर – Rukmani Temple, Dwarka

यह मंदिर द्वारका से करीब 3 किलोमीटर की दुरी पर द्वारका शहर के बाहरी हिस्से में स्थित है. इस मंदिर के बारे में एक रोचक कहानी है की एक बार दुर्वासा ऋषि जो भगवान श्री कृष्ण के गुरु थे, द्वारका में पधारने वाले थे यह खबर सुनकर भगवान कृष्ण तथा माता रुक्मणि उन्हें ससम्मान लेने के लिए जंगल में गए, दुर्वासा ऋषि की इच्छा के अनुरूप भगवान कृष्ण तथा रुक्मणि रथ में घोड़ों की जगह खुद जुत गए|

अत्यधिक गर्मी तथा थकान की वजह से माता रुक्मणि को प्यास सताने लेगी तो भगवान श्रीकृष्ण के माता की प्यास बुझाने के लिए जमीं से कुछ पानी निकाला जिसे रुक्मणि जी पीने लगी, यह देखकर ऋषि दुर्वासा बहुत क्रोधित हो गए की पहले गुरु से पानी का पूछने के बजाय रुक्मणि ने खुद कैसे पानी पी लिया. अत्यधिक क्रोधी स्वाभाव के होने के कारन दुर्वासा ने रुक्मणि जी को श्राप दिया की अगले बारह वर्षों तक रुक्मणि जी भगवान कृष्ण से दूर इसी स्थान पर तथा प्यासी रहेंगी. इसी श्राप की वजह से माता रुक्मणि का यह मंदिर द्वारका से बाहर है

गोमती घाट मंदिर – Gaumati Ghat Mandir, Dwarka

चक्रघाट पर गोमती नदी अरब सागर में मिलती है। यहीं पर गोमती घाट मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि यहां पर स्नान करने से मुक्ति मिलती है। द्वारकाधीश मंदिर के पिछले प्रवेश द्वार से गोमती नदी दिखायी देती है। गोमती और समुद्र के संगम पर ही भव्य समुद्र नारायण मंदिर (संगम नारायण मंदिर) भी है।

इन मंदिरों के अलावा नागेश्वर महादेव मंदिर, गोपी तालाब भी तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यह द्वारका से 20 किमी उत्तर में स्थित है। नागेश्वर महादेव मंदिर शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

गोपी तालाब – Gopi Talab, Dwarka

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से कुछ किलोमीटर चलने के बाद भेंट द्वारका के रास्ते में आता है गोपी तालाब. गोपी तालाब एक छोटा सा तालाब है जो की चन्दन जैसी पिली मिट्टी से घिरा है जिसे गोपी चन्दन कहते हैं, यह चन्दन भगवान् श्री कृष्ण के भक्तों के द्वारा माथे पर तिलक लगाने के लिए किया जाता हैं. यह तालाब हिन्दू पौराणिक कथाओं में विशेष स्थान रखता है, ऐसा माना जाता है की इसी जगह पर गोपियाँ भगवान् श्री कृष्ण से मिलने आई थीं.  गोपी तलाव द्वारका से 20  किलोमीटर तथा नागेश्वर से मात्र 5  किलोमीटर की दुरी पर भेंट द्वारका के मार्ग पर स्थित है

भेंट द्वारका, द्वारका से करीब 30 किलोमीटर दूर है तथा ऐसा माना जाता है की यह जगह भगवान कृष्ण का निवास स्थान थी. भगवान कृष्ण भेंट द्वारका में निवास करते थे, तथा उनका कार्यालय (दरबार) द्वारका में था. भेंट द्वारका वही जगह है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण की अपने बाल सखा सुदामा जी से मुलाकात (भेंट) हुई थी इसी वजह से इसे भेंट द्वारका कहा जाता है. भेंट द्वारका समुद्र के कुछ किलोमीटर अन्दर एक छोटे से द्वीप (Island) पर स्थित है जहाँ पहुँचने के लिए ओखा के समुद्री घाट से फेरी (छोटा जहाज या नाव) की सहायता से जाना पड़ता है. फेरी से भेंट द्वारका पहुँचने में लगभग आधे घंटे का समय लगता है.

भाल्का तीर्थ – Bhalka Tirtha, Dwarka

कहा जाता है कि इसी स्थान पर हिरण चर्म को धारण कर सो रहे कृष्ण को हिरण समझकर मारा गया तीर जाकर लगा और इस तरह उनकी इहलीला समाप्त हुई थी। कृष्ण का त्रिवेणी घाट पर दाह-संस्कार किया गया था। इसी के पास सोम (चंद्र) द्वारा स्थापित सोमनाथ मंदिर है। कहा जाता है कि मूल मंदिर सोने का था। इसके गिरने के बाद रावण ने चांदी के मंदिर का निर्माण किया। इसके ढहने के बाद श्रीकृष्ण ने लकड़ी के मंदिर का निर्माण किया। बाद में भीमदेव ने पाषाण मंदिर का निर्माण किया। सोमनाथ में एक सूर्य मंदिर भी है।

द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन का समय – Dwarkadhish Temple Darshan Timings 

श्री द्वारकाधीश मंदिर (dwarka temple) में दर्शन का समय सुबह 7.00 से दोपहर 12.30 और शाम 5.00 से 9.30 बजे तक हैं।

Shree Dwarkadhish Temple Morning Darshan Timings 

Morning 7.00 Mangla Arti

7.00 to 8.00 Mangla Darshan

8.00 to 9.00 Abhishek Pooja (Snan vidhi) : Darshan closed

9.00 to 9.30 Shringar Darshan

9.30 to 9.45 Snanbhog : Darshan closed

9.45 to 10.15 Shringar Darshan

10.15 to 10.30 Shringarbhog : Darshan closed

10.30 to 10.45 Shringar Arti

11.05 to 11.20 Gwal Bhog Darshan closed

11.20 to 12.00 Darshan

12.00 to 12.20 Rajbhog : Darshan closed

12.20 to 12.30 Darshan

12.30 Anosar : Darshan closed

Shree Dwarkadhish Temple Evening Darshan Timings 

5.00 Uthappan First Darshan

5.30 to 5.45 Uthappan Bhog Darshan closed

5.45 to 7.15 Darshan

रेलवे द्वारा – द्वारका अहमदाबाद-ओखा ब्रॉड गेज रेलवे लाइन पर एक स्टेशन है, जिसमें जामनगर (137 किमी), राजकोट (217 किमी) और अहमदाबाद (471 किमी) से जोड़ने वाली ट्रेनें शामिल हैं।

सड़क से: द्वारका जामनगर से द्वारका तक राज्य के राजमार्ग पर है। जामनगर और अहमदाबाद से बसें उपलब्ध हैं।

हवा से: निकटतम हवाई अड्डा जामनगर (137 किमी) है।

Tags : Mantra

Category : Temples


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