अत्यंत सरल ध्यान योग (मैडिटेशन) विधि & ध्यान लगाने की विधि
मेडिटेशन (dhyan yog) का लक्ष्य एकाग्रता और मन की शान्ति को प्राप्त करना है, और इस प्रकार अंततः ध्यान योग अर्थात मैडिटेशन (mindfulness) का उद्देश्य आत्म-चेतना (Self-consciousness) और आंतरिक शांति (Internal peace) के एक ऊँचे स्तर पर ले जाना है। आपको जानके आश्चर्य होगा कि इस अत्यंत सरल ध्यान लगाने की विधि से आप कहीं भी और किसी भी समय ध्यान लगा सकते है, अपने आपको शांति तथा सौम्यता की ओर पहुंचा सकते हैं |
अपने आपको शांति तथा सौम्यता की ओर पहुंचा सकते हैं, इस दौरान इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप के आसपास क्या हो रहा है। यह लेख ध्यान की मूल बातों से परिचय कराते हुए ज्ञान और सुख की ओर यात्रा शुरू करने में आपको सक्षम बनाएगा।
Meditation Kaise Kare – ध्यान कैसे करे
ध्यान का अभ्यास किसी ऐसे परिवेश में करना चाहिए जो शोर-शराबे रहित और शांतिदायी हो। यह विशेष रूप से आपको अपने लक्ष्यों पर केंद्रित करने में समर्थ बनाएगा और आपके मन को भटकाने वाली बाहरी चीजों की बौछार से बचायेगा। एक ऐसा स्थान तलाश करने की कोशिश कीजिए जहां ध्यान के क्षणों में आपको कोई बाहरी बाधा नहीं पहुँचे – भले ही यह पांच मिनट तक चले या पच्चीस मिनट। जरूरी नहीं कि यह स्थान बहुत बड़ा हो – चहलकदमी की जगह का या यहाँ तक कि दफ्तर का भी, अगर उसमें एकांत का अवसर हो, तो ध्यान के लिए उपयोग किया जा सकता है।
जो लोग ध्यान (Meditation in Hindi) करने में अभी बिल्कुल नए हैं, उनके लिए किसी भी बाहरी भटकाव से बचना विशेष जरूरी है। टीवी, फोन या शोर-शराबा करने वाले दूसरे उपकरणों को बंद कर दीजिए। यदि संगीत बजाना हो, तो शांत, आवृति वाली कोमल धुनों का चयन कीजिए जो आपकी एकाग्रता को न तोड़ें।
यह जान लीजिए कि ध्यान की जगह पूरी तरह निःशब्द न हो, इसलिए earplugs की कोई ज़रूरत नहीं है। घास काटने की मशीन के चलने या बाहर कुत्ते के भौंकने की आवाजें प्रभावी ध्यान में रुकावट नहीं बनेंगी। इसके विपरीत, इन आवाजों को अपने विचारों पर हावी न होने देना और इनकी ओर से सजग रहना एक सफल ध्यान का महत्वपूर्ण लक्षण है।
बहुत से लोगों के लिए खुले स्थानों पर ध्यान करना कारगर होता है। अगर आप एक भीड़-भाड़ वाली सड़क या शोर-शराबा करने वाली चीजों के नजदीक न बैठें हों, तो किसी पेड़ के नीचे या बगीचे के अपने पसंदीदा कोने में हरी-भरी घास पर बैठकर भी शांति पा सकते हैं।
यह भी जरूर पढ़े :
कैसे करें ध्यान ? | Dhyan Kaise kare
यह महत्वपूर्ण सवाल है। यह उसी तरह है कि हम पूछें कि कैसे श्वास लें, कैसे जीवन जीएं, आपसे सवाल पूछा जा सकता है कि क्या आप हंसना और रोना सीखते हैं या कि पूछते हैं कि कैसे रोएं या हंसे? सच मानो तो हमें कभी किसी ने नहीं सिखाया की हम कैसे पैदा हों। ध्यान हमारा स्वभाव है, जिसे हमने चकाचौंध के चक्कर में खो दिया है।
ध्यान के शुरुआती तत्व- Basic Element of Meditation
श्वास की गति
मानसिक हलचल
ध्यान का लक्ष्य
होशपूर्वक जीना
श्वास का महत्व – Importance of Breath
ध्यान में श्वास की गति को आवश्यक तत्व के रूप में मान्यता दी गई है। इसी से हम भीतरी और बाहरी दुनिया से जुड़े हैं। श्वास की गति तीन तरीके से बदलती है-
1.मनोभाव
इसमें मन और मस्तिष्क के द्वारा श्वास की गति ज्यादा संचालित होती है। जैसे क्रोध और खुशी में इसकी गति में भारी अंतर रहता है। श्वास को नियंत्रित करने से सभी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसीलिए श्वास क्रिया द्वारा ध्यान को केन्द्रित और सक्रिय करने में मदद मिलती है।
श्वास की गति से ही हमारी आयु घटती और बढ़ती है। ध्यान करते समय जब मन अस्थिर होकर भटक रहा हो उस समय श्वसन क्रिया पर ध्यान केन्द्रित करने से धीरे-धीरे मन और मस्तिष्क स्थिर हो जाता है और ध्यान लगने लगता है। ध्यान करते समय गहरी श्वास लेकर धीरे-धीरे से श्वास छोड़ने की क्रिया से जहां शरीरिक , मानसिक लाभ मिलता है |
मानसिक हलचल कैसे रोके – How to Control Thoughts
ध्यान (meditation in hindi) करने या ध्यान में होने के लिए मन और मस्तिष्क की गति को समझना जरूरी है। गति से तात्पर्य यह कि क्यों हम खयालों में खो जाते हैं, क्यों विचारों को ही सोचते रहते हैं या कि विचार करते रहते हैं या कि धुन, कल्पना आदि में खो जाते हैं। इस सबको रोकने के लिए ही कुछ उपाय हैं-
पहला आंखें बंदकर पुतलियों को स्थिर करें।
दूसरा जीभ को जरा भी ना हिलाएं उसे पूर्णत: स्थिर रखें।
तीसरा जब भी किसी भी प्रकार का विचार आए तो तुरंत ही सोचना बंद कर सजग हो जाएं।
इसी जबरदस्ती न करें बल्कि सहज योग अपनाएं।
निराकार ध्यान : Nirakar Dhyan
ध्यान (meditation in hindi) करते समय देखने को ही लक्ष्य बनाएं। दूसरे नंबर पर सुनने को रखें। ध्यान दें, गौर करें कि बाहर जो ढेर सारी आवाजें हैं उनमें एक आवाज ऐसी है जो सतत जारी रहती है आवाज, फेन की आवाज जैसी आवाज या जैसे कोई कर रहा है ॐ का उच्चारण। अर्थात सन्नाटे की आवाज। इसी तरह शरीर के भीतर भी आवाज जारी है। ध्यान दें। सुनने और बंद आंखों के सामने छाए अंधेरे को देखने का प्रयास करें। इसे कहते हैं निराकार ध्यान।
आकार ध्यान : Aakar Dhyan
आकार ध्यान में प्रकृति और हरे-भरे वृक्षों की कल्पना की जाती है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि किसी पहाड़ की चोटी पर बैठे हैं और मस्त हवा चल रही है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि आपका ईष्टदेव आपके सामने खड़ा हैं। ‘कल्पना ध्यान’ को इसलिए करते हैं ताकि शुरुआत में हम मन को इधर उधर भटकाने से रोक पाएं।
होशपूर्वक जीना :
क्या सच में ही आप ध्यान में जी रहे हैं? ध्यान में जीना सबसे मुश्किल कार्य है। व्यक्ति कुछ क्षण के लिए ही होश में रहता है और फिर पुन: यंत्रवत जीने लगता है। इस यंत्रवत जीवन को जीना छोड़ देना ही ध्यान है।जैसे की आप गाड़ी चला रहे हैं, लेकिन क्या आपको इसका पूरा पूरा ध्यान है कि ‘आप’ गाड़ी चला रहे हैं। आपका हाथ कहां हैं, पैर कहां है और आप देख कहां रहे हैं। फिर जो देख रहे हैं पूर्णत: होशपूर्वक है कि आप देख रहे हैं वह भी इस धरती पर। कभी आपने गूगल अर्थ का इस्तेमाल किया होगा। उसे आप झूम इन और झूम ऑउट करके देखें। बस उसी तरह अपनी स्थिति जानें। कोई है जो बहुत ऊपर से आपको देख रहा है। शायद आप ही हों।
यह भी जरूर पढ़े :
विवेकानन्द जी ने ध्यान (Meditation in Hindi) करने के लिए जो सबसे उपयुक्त विधि बतलाई थी वो उनकी पुस्तक राजयोग (Rajyoga) मैं वर्णित है सर्वप्रथम एक कम्बल के आसन पर पद्मासन, या ना कर सकते हों तो सुखासन मैं, पूर्व की तरफ मुख रख कर बैठ जाएँ, और अपने भीतर चल रहे विचारों पर ध्यान लगाएं,अपने मन से यह सोचें कि मैं साक्षी हूँ और मुझे अपने भीतर उत्पन्न हो रहे विचारों पर नियंत्रण करना है |
मुझे मन को वैसे ही शांत करना है जैसे निरंतर कंकरी फैंकने से पानी मैं उत्पन्न लहरों को रोकने के लिए बहार से कंकरी फैंकना बंद करना पड़ता है जब तालाब के किनारे बैठा बच्चा कंकरी पानी मैं फैंकना बंद कर देता है तो पानी शांत हो जाता है उसमें लहरों की उत्पत्ती बंद होते ही किनारे पर बैठे हुए को, शांत पानी मैं वो स्वयं तथा उसके पीछे की बहुत सी चीजें दिखाई देने लगती हैं।
ऐसे ही जब हम लोग मन मैं निरंतर बहार से आने वाले विचारों पर नियंत्रण कर देते है तब बहुत सी ऐसी वस्तुएं द्रष्टव्य होने लगती हैं जो अभी तक नजर या आब्जर्वेशन मैं नहीं आ पा रहीं थीं अपने पीछे के दृश्य के सामान भूतकाल तो ऐसे स्प्ष्ट दीखता है जैसे पानी पर अपने पीछे का नजारा …..
सद्गुरु ओशो के अनुसार ध्यान विधि | OSHO Meditation Techniques
ध्यान की प्राथमिक विधि : इस ध्यान विधि का कोई नाम नहीं है. इसमें कुल छह चरण हैं. हर चरण में एक सूत्र और उससे जुड़ा हुआ एक प्रयोग है. इसमें पहले चरण का उल्लेख मैं यहां कर रहा हूं. बहुत सोच-विचार और तर्क में पड़ने की जरूरत नहीं है. अगर आप पहले से किसी प्रकार की कोई ध्यान विधि का अभ्यास कर रहे हैं तो भी इस अभ्यास को अपने जीवन में उतार सकते हैं.
ध्यान का सूत्र
मौन रहना और मुस्कुराना.
ध्यान का अभ्यास
थोड़ी देर के लिए कहीं एकांत में और मौन में बैठ जाना और आंखे बंद रखना. अपने मन में चल रहे विचारों को देखना. देखना कि कैसे एक-एक करके विचार आते हैं और गायब हो जाते हैं. तुम्हें कुछ करना नहीं है. विचारों को देखने के लिए कुछ करने की जरूरत भी नहीं होती. अच्छे-बुरे हर तरह के विचार पर मन ही मन मुस्कुराना. विचारों पर कोई प्रतिक्रिया मत करना, सिर्फ मुस्कराना. थोड़ी देर भी इस अवस्था में रहे तो काम बन जाएगा.
थोड़ी ही देर में तुम्हारा शरीर स्थिर और मन शांत हो जाएगा. सांस लयबद्ध हो जाएगी. धीरे-धीरे आंख खोलकर अपने काम में पुनः लग जाओ.
पौराणिक ग्रंथो के अनुसार ध्यान की विधिया
श्री कृष्ण अर्जुन संवाद – भगवन श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा: शुद्ध एवं एकांत स्थान पर कुशा आदि का आसन बिछाकर सुखासन में बैठें. अपने मन को एकाग्र करें. मन व इन्द्रियों की क्रियाओं को अपने वश में करें, जिससे अंतःकरण शुद्ध हो. इसके लिए शारीर, सर व गर्दन को सीधा रखें और हिलाएं-दुलायें नहीं. आँखें बंद रखें व साथ ही जीभ को भी न हिलाएं. अब अपनी आँख की पुतलियों को भी इधर-उधर नहीं हिलने दें और उन्हें एकदम सामने देखता हुआ रखें. एकमात्र ईश्वर का स्मरण करते रहें. ऐसा करने से कुछ ही देर में मन शांत हो जाता है और ध्यान आज्ञा चक्र पर स्थित हो जाता है और परम ज्योति स्वरुप परमात्मा के दर्शन होते हैं.
विशेष :- ध्यान दें जब तक मन में विचार चलते हैं तभी तक आँख की पुतलियाँ इधर-उधर चलती रहती हैं. और जब तक आँख की पुतलियाँ इधर-उधर चलती हैं तब तक हमारे मन में विचार उत्पन्न होते रहते हैं. जैसे ही हम मन में चल रहे समस्त विचारों को रोक लेते हैं तो आँख की पुतलियाँ रुक जाती हैं. इसी प्रकार यदि आँख की पुतलियों को रोक लें तो मन के विचार पूरी तरह रुक जाते हैं. और मन व आँख की पुतलियों के रुकते ही आत्मा का प्रभाव ज्योति के रूप में दीख पड़ता है.
– गीतोपदेश अ. ६ श्लोक १२ से 15
२. शिव-पार्वती संवाद :-
भगवन शिव ने पार्वतीजी से कहा :- “एकांत स्थान पर सुखासन में बैठ जाएँ. मन में ईश्वर का स्मरण करते रहें. अब तेजी से सांस अन्दर खींचकर फिर तेजी से पूरी सांस बाहर छोड़कर रोक लें. श्वास इतनी जोर से बाहर छोड़ें कि इसकी आवाज पास बैठे व्यक्ति को भी सुनाई दे. इस प्रकार सांस बाहर छोड़ने से वह बहुत देर तक बाहर रुकी रहती है. उस समय श्वास रुकने से मन भी रुक जाता है और आँखों की पुतलियाँ भी रुक जाती हैं. साथ ही आज्ञा चक्र पर दबाव पड़ता है और वह खुल जाता है. श्वास व मन के रुकने से अपने आप ही ध्यान होने लगता है और आत्मा का प्रकाश दिखाई देने लगता है. यह विधि शीघ्र ही आज्ञा चक्र को जाग्रत कर देती है.
३. शिवजी ने पार्वतीजी से कहा :-
रात्रि में एकांत में बैठ जाएँ. आंकें बंद करें. हाथों की अँगुलियों से आँखों की पुतलियों को दबाएँ. इस प्रकार दबाने से तारे-सितारे दिखाई देंगे. कुछ देर दबाये रखें फिर धीरे-धीरे अँगुलियों का दबाव कम करते हुए छोड़ दें तो आपको सूर्य के सामान तेजस्वी गोला दिखाई देगा. इसे तैजस ब्रह्म कहते हैं. इसे देखते रहने का अभ्यास करें. कुछ समय के अभ्यास के बाद आप इसे खुली आँखों से भी आकाश में देख सकते हैं. इसके अभ्यास से समस्त विकार नष्ट होते हैं, मन शांत होता है और परमात्मा का बोध होता है.
Tags : Mantra
Category : Mantra