प्रदोष व्रत कथा & जानिए क्या है इस व्रत का महत्व, कैसे करें पूजा ?
प्रत्येक माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी के दिन संध्याकाल के समय को “प्रदोष” कहा जाता है और इस दिन शिवजी को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने का विधान है, लेकिन साथ ही उस दिन से जुड़े देवता की पूजा-अर्चना भी करनी चाहिए | ऐसी मान्यता है की इस व्रत को करने से सारे दोष मिट जाते हैं | सूर्य अस्त होने के बाद रात्रि के आने से पहले का समय को प्रदोष काल कहा जाता है |
प्रदोष व्रत कथा – Pradosh Vrat Katha
प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।
कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था।
ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरु किया। एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त “अंशुमती” नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया।
दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया। इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुन: आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती।
कैसे करें पूजा ? – Pradosh Vrat Puja Vidhi
इस दिन आप शिव मंदिर में जाकर गंगाजल से शिव जी को स्नान कराएं.
शिव को स्नान कराने के बाद सुपारी, लौंग, दीप, पुष्प, अक्षत, बेल पत्र से भगवान शिव जी का पूजन करें.
पूजा में घी का दीपक जलाना चाहिए.
इसके बाद भगवान शिव को घी और चीनी का भोग लगाना चाहिए.
क्या है मान्यता ? – Pradosh Vrat ki Manyta
इस व्रत को रखने से दो गायों के दान करने के बराबर पुण्य मिलता है.
इस व्रत को रखने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
इस दिन व्रत रखने से परिवार हमेशा स्वस्थ रहता है.
इस व्रत को करने से पति-पत्नी के रिश्ते की सुख शांति के लिए भी रखा जाता है.
पूजन मुहूर्त – Pradosh Vrat Puja Muhurat
जिस दिन भी करे प्रदोषकाल में करे |
इस मंत्र का करें जाप – Pradosh Vrat Mantra
ब्रीं बलवीराय नमः शिवाय ब्रीं॥
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