ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग & Omkareshwar Jyotirlinga
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग – Omkareshwar Jyotirlinga
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर के समीप खंडवा जिले में स्थित है। यह नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। यह द्वीप हिन्दू पवित्र चिन्ह ॐ के आकार में बना है।यह शिवजी का चौथा प्रमुख ज्योतिर्लिंग कहलाता है। ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग के दो रुपों ओंकारेश्वर और ममलेश्वर की पूजा की जाती है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को शिव महापुराण में ‘परमेश्वर लिंग’ कहा गया है।
ओंकारेश्वर मंदिर – Omkareshwar Mandir
ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर एक पांच मंजिला इमारत है जिसकी प्रथम मंजिल पर भगवान महाकालेश्वर का मंदिर है तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ महादेव चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर महादेव और पांचवी मंजिल पर राजेश्वर महादेव का मंदिर है
ओमकारेश्वर मंदिर के सभामंडप में साठ बड़े स्तंभ हैँ जोकि 15 फीट ऊँचे हैं। इसी परिसर में तीर्थयात्रियों के लिए भोजनालय भी चलाया जाता है जहाँ नाममात्र के शुल्क पर भोजन मिलता है । परिसर में ही ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ट्रस्ट का कार्यलय है जो समस्त प्रबंध करता है |
मंदिर में हमेशा श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, जो नर्मदा में स्नान के बाद आते हैं और अभिषेक करते हैं या पुजारियों के माध्यम से विशेष पूजा कराते हैं।
ओंकारेश्वर दर्शन – Omkareshwar Darshan
मन्दिर के अहाते में पंचमुख गणेशजी की मूर्ति है। प्रथम तल पर ओंकारेश्वर लिंग विराजमान हैं। श्रीओंकारेश्वर का लिंग अनगढ़ है। यह लिंग मन्दिर के ठीक शिखर के नीचे न होकर एक ओर हटकर है। लिंग के चारों ओर जल भरा रहता है। मन्दिर का द्वार छोटा है। ऐसा लगता है जैसे गुफा में जा रहे हों। पास में ही पार्वतीजी की मूर्ति है। ओंकारेश्वर मन्दिर में सीढ़ियाँ चढ़कर दूसरी मंजिल पर जाने पर महाकालेश्वर लिंग के दर्शन होते हैं। यह लिंग शिखर के नीचे है। तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ लिंग है। यह भी शिखर के नीचे है। चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर लिंग है। पांचवीं मंजिल पर ध्वजेश्वर लिंग है।
ओंकारेश्वर के मंदिर – Omkareshwar Temple
ओम्कारेश्वर में अनेक मंदिर हैं नर्मदा के दोनों दक्षिणी व उत्तरी तटों पर मंदिर हैं । पूरा परिक्रमा मार्ग मंदिरों आश्रमो से भरा हुआ है ।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा – Omkareshwar Jyotirlinga Story
एक बार नारद जी भ्रमण करते हुए विंध्याचल पर्वत पर पहुंचे। वहां पर्वतराज विंध्याचल ने नारद जी का स्वागत किया और यह कहते हुए कि मैं सर्वगुण संपन्न हूँ, मेरे पास सब कुछ है, हर प्रकार की सम्पदा है, नारद जी के समक्ष पहुंचे।
नारद जी विंध्याचल की अभिमान युक्त बातें सुनकर, लम्बी सांस खींचकर चुपचाप खड़े रहे। तब विंध्याचल ने नारद जी से पूछा कि आपको मेरे पास कौनसी कमी दिखाई दी। जिसे देखकर आपने लम्बी सांस खींची। तब नारद जी ने कहा कि तुम्हारे पास सब कुछ है किन्तु तुम सुमेरू पर्वत से ऊंचे नहीं हो । उस पर्वत का भाग देवताओं के लोकों तक पहुंचा हुआ है और तुम्हारे शिखर का भाग वहां तक कभी नहीं पहुँच पायेगा। ऐसा कह कर नारद जी वहां से चले गए। लेकिन वहां खड़े विंध्याचल को बहुत दुःख हुआ और मन ही मन शोक करने लगा।
तभी उसने शिव भगवान की आराधना करने का निश्चय किया। जहाँ पर साक्षात् ओमकार विद्यमान है, वहां पर उन्होंने शिवलिंग स्थापित किया और लगातार प्रसन्न मन से 6 महीने तक पूजा की। इस प्रकार शिव भगवान जी अतिप्रसन्न हुए और वहां प्रकट हुए। उन्होंने विंध्य से कहा कि मैं तमसे बहुत प्रसन्न हूँ। तुम कोई भी वरदान मांग सकते हो।
तब विंध्य ने कहा कि आप सचमुच मुझ से प्रसन्न हैं तो मुझे बुद्धि प्रदान करें जो अपने कार्य को सिद्ध करने वाले हो। तब शिव जी ने उनसे कहा कि मैं तुम्हे वर प्रदान करता हूँ कि तुम जिस प्रकार का कार्य करना चाहते हो वह सिद्ध हो। वर देने के पश्चात वहां कुछ देवता और ऋषि भी आ गए। उन सभी ने भगवान शिव जी की पूजा की और प्रार्थना की कि हे प्रभु ! आप सदा के लिए यहाँ विराजमान हो जाईए।
शिव भगवान अत्यंत प्रसन्न हुए। लोक कल्याण करने वाले भगवान शिव ने उन लोगों की बात मान ली और वह ओमकार लिंग दो लिंगों में विभक्त हो गया। जो पार्थिव लिंग विंध्य के द्वारा बनाया गया था वह परमेश्वर लिंग के नाम से जाना जाता है और जो भगवान शिव जहाँ स्थापित हुए वह लिंग ओमकार लिंग कहलाता है। परमेश्वर लिंग को अमलेश्वर लिंग भी कहा जाता है और तब से ही ये दोनों शिवलिंग जगत में प्रसिद्ध हुए।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास – Omkareshwar History
मध्ययुगीन काल में मंधाता ओंकारेश्वर पर धार के परमार, मालवा के सुल्तान, ग्वालियर के सिंधिया जैसे तत्कालीन शासकों का शासन रहा और फिर अंत में यह 1894 मैं अंग्रेजों के अधीन हो गया |
आधिपत्य के तहत आदिवासी भील सरदार नथ्थू भील का तब शासन था का शासन था और दरियाव गोसाई ने अपने अधिपत्य के लिए जयपुर के राजा का दरवाजा खटखटाया। राजा ने मालवा की सीमा पर अपने भाई भरतसिंह चौहान, जो की झालरापाटन के सूबेदार थे भेजा है। अंत में पूरे संघर्ष का अंत भरतसिंह चौहान की शादी नत्थू भील की ही बेटी के साथ होने पर हुआ ।
राजपूत सहयोगियों की भी अन्य भील लड़कियों से शादी हुई | 1165 ईस्वी उनके वंशजों को भिलाला कहा जाता था | वो सब मंधाता में बस गए। भरतसिंह चौहान के वंशजों का ओंकारेश्वर में राज रहा । ब्रिटिश शासन के दौरान इन्सब्को राव रूप में जाना जाता था , उनकी जागीर अधिकार के रूप में मंधाता ओंकारेश्वर था, सब अब समाप्त कर दिया। भरतसिंह चौहान के भावी वंशज राजपूतों कहाते है।
ओंकारेश्वर मंदिर का समय – Omkareshwar Temple Timings
Starts: 5 AM to 3:50 PM, Ends : 4:15 PM to 10:00 PM.
ओंकारेश्वर के पास पर्यटन स्थल – Tourist Places Near Omkareshwar
कैसे पहुंचे ओमकारेश्वर – How To Reach Omkareshwar
Omkareshwar by Air
निकटतम घरेलू हवाई अड्डा देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा, इंदौर है, जो ओंकारेश्वर से लगभग दो घंटे की दूरी पर है, यह एयर इंडिया, जेट एयरवेज, जेटकनेक्ट के माध्यम से वाराणसी, दिल्ली, लखनऊ, काठमांडू, भोपाल, हैदराबाद और कोलकाता जैसे शहरों के स्पेक्ट्रम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
omkareshwar jyotirlinga nearest railway station
ओंकारेश्वर का अपना रेलवे स्टेशन है जिसका नाम ओंकारेश्वर रेलवे स्टेशन है जो ओंकारेश्वर शहर से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह प्रमुख रतलाम-खंडवा रेलवे लाइन पर स्थित है और नई दिल्ली, बैंगलोर, मैसूर, लखनऊ, चेन्नई, कन्याकुमारी, पुरी, अहमदाबाद, जयपुर और रतलाम जैसे शहरों से जुड़ा हुआ है।
Omkareshwar by Road
आप उज्जैन, इंदौर या खंडवा से बस में भी जा सकते हैं।
ओंकारेश्वर जाने का सबसे अच्छा समय – Best Time To Visit Omkareshwar
ओंकारेश्वर जाने के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे अच्छा है। हालाँकि, आप मानसून के दौरान भी जा सकते हैं क्योंकि बारिश यहाँ औसतन अच्छी होती है। दशहरा के त्यौहारों के दौरान यह शहर बहुत ही आकर्षक लगता है और यदि संभव हो तो, आपको इस समय जाना चाहिए ताकि आप इस जगह की सुंदरता का पूरा आननद ले सकें।
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