सरस्वती स्तोत्र -Saraswati Stotram
Saraswati Stotram – सरस्वती स्तोत्र
माँ सरस्वती का स्तोत्र (Saraswati Stotram) को निरंतर पढ़ने से भक्तों को ज्ञान और बुद्धि प्राप्त होती हैं. सरस्वती स्तोत्र Saraswati Stotram Lyrics के प्रभाव से अज्ञानी भी थोड़े ही प्रयास से विद्वान बन जाता है. माता की एक ऐसी स्तुति है, जो सबसे ज्यादा प्रचलित है. मां सरस्वती की यह स्तुति “सरस्वती स्तोत्र” भक्तों का कल्याण करने वाली है. इसके पाठ से निर्मल बुद्धि की प्राप्ति होती है.
Saraswati Stotram With Lyrics – सरस्वती स्तोत्र अर्थ सहित
॥ श्री सरस्वती स्तोत्र ॥
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रान्विता
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
अर्थ – जो कुन्द के फूल, चन्द्रमा और बर्फ के समान श्वेत हैं। जो शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं। जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित हैं। जो श्वेत कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि जिनकी सदा स्तुति करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता हर लेती हैं, वे भगवती सरस्वती मेरा पालन करें।
आशासु राशीभवदंगवल्लीभासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम ।
अर्थ – हे कमल के आसन पर बैठने वाली सुन्दरी सरस्वति ! आप सब दिशाओं में फैली हुई अपनी देहलता की आभा से ही क्षीर सागर को दास बनाने वाली और मंद मुस्कान से शरद ऋतु के चन्द्रमा को तिरस्कृत करने वाली हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे ।
अर्थ – शरद ऋतु में उत्पन्न कमल के समान मुखवाली और सब मनोरथों को पूर्ण करने वाली शारदा सब सम्पत्तियों के साथ मेरे मुख में सदा निवास करें।
सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम ।
अर्थ – वाणी की अधिष्ठात्री उन देवी सरस्वती को मैं प्रणाम करता हूँ, जिनकी कृपा से मनुष्य देवता बन जाता है।
पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्न: सरस्वती ।
अर्थ – बुद्धिरूपी सोने के लिए कसौटी के समान सरस्वती जी, जो केवल वचन से ही विद्वान और मूर्खों की परीक्षा कर देती हैं, हमलोगों का पालन करें।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
अर्थ – जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्म विचार की परम तत्व हैं, जो सारे संसार में व्याप्त हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, जड़ता रूपी अंधकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिक की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरि भगवती सरस्वती की मैं वंदना करता हूँ।
वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले, भक्तार्तिनाशिनि विरिंचिहरीशवन्द्ये ।
अर्थ – हे वीणा धारण करने वाली, अपार मंगल देने वाली, भक्तों के दुःख छुड़ाने वाली, ब्रह्मा, विष्णु और शिव से वन्दित होने वाली, कीर्ति तथा मनोरथ देने वाली और विद्या देने वाली पूजनीया सरस्वती ! मैं आपको नित्य प्रणाम करता हूँ।
श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे, श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे ।
अर्थ – हे श्वेत कमलों से भरे हुए निर्मल आसन पर विराजने वाली, श्वेत वस्त्रों से ढके सुन्दर शरीर वाली, खिले हुए सुन्दर श्वेत कमल के समान मंजुल मुख वाली और विद्या देने वाली सरस्वती ! मैं आपको नित्य प्रणाम करता हूँ।
मातस्त्वदीयपदपंकजभक्तियुक्ता, ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय ।
अर्थ – हे माता ! जो मनुष्य आपके चरण कमलों में भक्ति रखकर और सब देवताओं को छोड़ कर आपका भजन करते हैं, वे पृथ्वी, अग्नि, वायु, आकाश और जल – इन पाँच तत्वों के बने शरीर से ही देवता बन जाते हैं।
मोहान्धकारभरिते ह्रदये मदीये, मात: सदैव कुरु वासमुदारभावे ।
अर्थ – हे उदार बुद्धि वाली माँ ! मोह रूपी अंधकार से भरे मेरे ह्रदय में सदा निवास करें और अपने सब अंगों की निर्मल कान्ति से मेरे मन के अंधकार का शीघ्र नाश कीजिये।
ब्रह्मा जगत सृजति पालयतीन्दिरेश:, शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावै: ।
अर्थ – हे देवि ! आपके ही प्रभाव से ब्रह्मा जगत को बनाते हैं, विष्णु पालते हैं और शिव विनाश करते हैं। हे प्रकट प्रभाव वाली माँ ! यदि इन तीनों पर आपकी कृपा न हो, तो वे किसी प्रकार अपना काम नहीं कर सकते।
लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टि: प्रभा धृति: ।
अर्थ – हे सरस्वती ! लक्ष्मी, मेधा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा, धृति – इन आठ मूर्तियों से मेरी रक्षा करें।
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम: ।
अर्थ – सरस्वती को नित्य नमस्कार है, भद्रकाली को नमस्कार है और वेद, वेदान्त, वेदांग तथा विद्याओं के स्थानों को नमस्कार है।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
अर्थ – हे महाभाग्यवती ज्ञानस्वरूपा कमल के समान विशाल नेत्र वाली, ज्ञानदात्री सरस्वती ! मुझे विद्या प्रदान करें, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत ।
अर्थ – हे देवि ! जो अक्षर, पद अथवा मात्रा छूट गयी हो, उसके लिए क्षमा करें और हे परमेश्वरि ! मुझ पर सदा प्रसन्न रहें।
॥ इति श्री सरस्वती स्तोत्रम सम्पूर्णम् ॥
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